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________________ गाथा परम विजय की ३. पुलाय लद्धि - पुलाक लब्धि भी नष्ट हो गई। पुलाक लब्धि बड़ी शक्ति होती है। आज सुनें तो आप आश्चर्य करेंगे। अणुबम आदि सब फीके पड़ जाते हैं। पुलाक लब्धि संपन्न मुनि का सामर्थ्य कितना है! कोई छेड़-छाड़ करता है या कोई अनिष्ट करता है और वह आवेश में आ जाता है, पुलाक लब्धि का प्रयोग करता है तो कितना अनर्थ होता है ! चक्रवर्ती की विशाल सेना जो बारह योजन (४८ कोस और ६६ माइल) इतने विशाल क्षेत्र में पड़ी हुई है वह मुनि पुलाक लब्धि का प्रयोग करता है तो ऐसे दण्ड निकलते हैं कि सारी सेना को जैसे पील देता है, हत - प्रहत कर देता है, सब घबरा जाते हैं। इतनी भयंकर लब्धि है पुलाक लब्धि। पुलाक लब्धि भी विच्छिन्न हो गई। कुछ तो अच्छा ही हुआ। अगर बच जाती तो कोई न दुरुपयोग कर भी लेता। ४. आहारक लब्धि-आहारक शरीर कितना शक्तिशाली होता है। जैसे चतुर्दशपूर्वी मुनि बैठा है। कोई आया प्रश्न पूछने और बहुत सूक्ष्म प्रश्न पूछा अथवा चतुर्दशपूर्वी भी कोई आ गया, कोई विशिष्टज्ञानी आ गया और प्रश्न पूछा -गणित का सूक्ष्म प्रश्न उत्तर नहीं आ रहा है। तत्काल आहारक लब्धि का प्रयोग किया, शरीर से एक पुतला निकला और वह पुतला जहां सर्वज्ञ होते हैं विदेह क्षेत्र में, वहां जाता है। केवली भगवान से वह प्रश्न पूछता है, प्रश्न पूछकर वापस आकर उत्तर बता देता है और पुनः शरीरस्थ हो जाता है। यह सारी क्रिया होती है पर पूछने वाले को यह पता नहीं चलता कि मुझे उत्तर देने में विलम्ब किया। इतनी जल्दी सारा काम होता है। आजकल जैसे सुपर कम्प्यूटर की बात कुछ आती है । इतना द्रुतगामी काम होता है। एक पानी की बूंद गिर रही है और उसके फोटो लिए । कितने फोटो! कई करोड़ फोटो ले लिए। कोई सामान्य आदमी सोच नहीं सकता पर यह सूक्ष्म जगत् का ज्ञान इतना विचित्र है कि जो जानता है वही जानता है। इतने अल्प समय में सारी क्रिया हो जाती है। सामने वाले को विलम्ब का पता नहीं चलता। वह शक्ति है ‘आहारक लब्धि’। वह भी विच्छिन्न हो गई। ५. क्षपक श्रेणी -जो केवली होता है, वह क्षपक श्रेणी के आरोहण से होता है । वह क्षपक श्रेणी विच्छिन्न हो गई। ६. उपशम श्रेणी भी विच्छिन्न हो गई। उपशम और क्षपक आरोहण की श्रेणियां हैं। ७. जिनकल्प की साधना-मुनि अकेला रहकर जिनकल्प की साधना करता । वह विशिष्ट साध का प्रयोग था। वह साधना भी विच्छिन्न हो गई। ८. संयम त्रिक्–परिहार विशुद्धि चारित्र, सूक्ष्म संपराय चारित्र और यथाख्यात चारित्र - ये भी साधना के बड़े प्रयोग थे। ये चारित्र भी विच्छिन्न हो गए। ६. केवलज्ञान विच्छिन्न। १०. मोक्ष की प्राप्ति विच्छिन्न । जम्बूकुमार के निर्वाण काल के साथ ये दस बातें विच्छिन्न हो गईं। जिनभद्रगणि ने बहुत सुन्दर लिखा है— मनःपर्यवज्ञान, परम अवधिज्ञान, पुलाक लब्धि, आहारक शरीर, उपशम श्रेणी, क्षपक श्रेणी, जिनकल्प, संयम-त्रिक, केवली, सिद्ध-ये दस चीजें विच्छिन्न हो गईं। ३६७
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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