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________________ 20 / 11. 2 गाथा ले जाओ। इसे राजा को भेंट करना और कह देना इसे परीक्षा के तौर पर भेज रहा हूं। और जरूरत होगी तो विपुल मात्रा में भेज दूंगा।' 'सुरमे की विशेषता क्या है?' 'महाराज! इतना चमत्कारी सुरमा है कि जन्मांध व्यक्ति की आंख में आंजो तो वह चक्षुष्मान हो जाता है, आंखें खुल जाती हैं, ज्योति प्रगट हो जाती है।' राजा ने देखा डिबिया छोटी-सी है। सिर्फ दो शलाका भर सुरमा है, जिसे दो आंखों में आंजा जा सके। ___ राजा ने सोचा-बहुत अच्छा हुआ। मेरा प्रधानमंत्री जो इतना बुद्धिमान, इतना अनुभवी और इतना विशेषज्ञ था वह अंधा हो गया। उसको बुलाऊं, सुरमा दूं। वह चक्षुष्मान बन जाए, देखने लग जाए तो मेरे राज्य का काम बहुत अच्छा चलेगा। राजा ने तत्काल प्रधानमंत्री को, जो अंधता के कारण निवृत्त था, बुलाया, बुलाकर कहा–'प्रधानमंत्रीजी! यह एक दिव्य प्रसाद मुझे मिला है।' 'महाराज! क्या है?' 'यह सुरमा है। इसे आंजो, तुम्हारी आंख खुल जायेगी।' मंत्री ने डिब्बी हाथ में ली। एक सलाई भरी। एक आंख में आंजा, एकदम ज्योति प्रगट हो गई। राजा ने कहा-'सिर्फ एक आंख में आंज सके, इतना सुरमा और है।' मंत्री ने सलाई भरी पर आंख में नहीं, जीभ पर डाली। राजा ने कहा-'क्या कर रहे हैं? आप जीभ पर डाल रहे हैं। यह तो आंख में आंजने का है।' 'राजन्! चिंता मत करो। मैं जान-बूझकर कर रहा हूं। मैं मूर्खता नहीं कर रहा हूं।' सब आश्चर्यचकित रह गए। __मंत्री ने कहा-'महाराज! बस, दूत को विदा दें। अब सुरमा मंगाने की जरूरत नहीं है। मैंने सारा विश्लेषण कर लिया है कि इस सुरमे में क्या-क्या वस्तुएं हैं।' ____ बड़ी चामत्कारिक शक्ति थी यह इंद्रिय पाटव। अनेक आगम व्याख्या ग्रंथों में यह वर्णन आता है कि जीभ पर चीज रखी और उसमें जो पचास चीजें हैं, उनका विश्लेषण कर लिया, यह जान लिया कि क्याक्या इसमें डाला हुआ है। ___ आज की लेबोरेट्री भी गलत विश्लेषण कर देती है। प्रयोगशाला में कई बार गलत नमूने आ जाते हैं। पर उस युग में इन्द्रिय-पाटव इतना विकसित था कि कोई भी विश्लेषण गलत नहीं होता था। दूत वापस राजा के पास गया! राजा ने पूछा-क्या हुआ।' उसने कहा-'महाराज! वहां तो सुरमा तैयार हो गया।' 'अरे कैसे हुआ?' 'मंत्री ने सुरमा बना लिया, सारी चीजें बता दी।'' परम विजय की ३६१
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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