SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा परम विजय की उत्सुकता समय को बहुत लंबा कर देती है। कोई काम करना होता है और वह साधारण ढंग से चलता है तो समय की लंबाई का बोध नहीं होता। उत्सुकता बढ़ी हुई होती है तो एक-एक पल भारी बनता है। यही तो अनेकांत का सापेक्षवाद है। पूछा जाए-काल छोटा या बड़ा? इसका एकान्ततः उत्तर नहीं दिया जा सकता। काल तो अपनी गति से चलता है पर अनुभूति में लंबाई और छोटाई का अंतर आ जाता है। एक काल बहुत लंबा लगता है, एक बहत छोटा लगता है। ___आइन्स्टीन से उसकी पत्नी ने पूछा-'आपका यह सापेक्षवाद क्या है?' आइन्स्टीन ने कहा-'देखो, जब कोई अपने प्रिय व्यक्ति के पास बैठता है तो उसे एक घंटा भी दो मिनट जैसा लगता है। उसी को जलती हुई भट्ठी के पास ले जाकर बिठा दें तो दो मिनट भी घंटा जितना लगता है।' जम्बूकुमार सहित सब तैयार हो गये तो पल-पल बड़ा लगने लगा। सबमें एक त्वरा हो रही है-जल्दी चलो, सुधर्मा स्वामी की सभा में चलो। ____ प्रस्थान शुरू हुआ। जनता को पता लग गया-जम्बूकुमार दीक्षा के लिए जा रहा है। कौतूहलपूर्ण आश्चर्य हुआ कल तो विवाह हुआ, इतना दहेज आया और आज मुनि बन रहा है, सब छोड़ रहा है। न जाने कितने लोगों के मन में लार टपकी होगी-काश! इतना धन हमें मिलता तो हम कभी छोड़ते ही नहीं। कितना धन मिला, दहेज में अपार संपदा मिली, उसे छोड़ रहा है। कुछ लोगों ने जम्बूकुमार की समझ पर टिप्पणी करते हुए कहा-इतना धन छोड़कर साधु बनना-यह कैसी समझ है! ___ जो लोग धन के लोभी हैं, धन में आसक्त हैं उनके यह बात कभी समझ में नहीं आती कि कोई व्यक्ति इतना धन छोड़ सकता है! वे यह सोच भी नहीं सकते किन्तु जो विरक्त हैं, अनासक्त हैं, उनके मुख से साधुवाद के स्वर प्रस्फुटित हो रहे हैं 'जम्बूकुमार ने बड़ा कार्य किया है। अपार धन-वैभव, नव विवाहित कन्याओं का त्याग कर सचमुच एक आदर्श उपस्थित किया है।' 420 ३७६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy