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________________ - ® ( जम्बूकुमार का दर्शन बदल गया। वे पुद्गल से ऊपर उठ गये। उन्हें चारों तरफ आत्मा ही आत्मा दिखाई देने लग गई पर उस दिशा में प्रस्थान में अभी भी व्यावहारिक कठिनाइयां बनी हुई हैं। सबका मत रहा-'ये जो आठ नवोढ़ाएं हैं, इनके माता-पिता को बुलाओ, उनकी आज्ञा भी लो।' ___ जम्बूकुमार ने इस मत को अधिमान दिया। तत्काल संदेशवाहक भेजे। सब एक जगह रहते नहीं थे। सबके घर भी पास-पास नहीं थे इसलिए आठ जगह अलग-अलग संदेशवाहक भेजे। संदेशवाहक पहुंचे, संदेश दिया। माता-पिता ने संदेश पढ़ा-'जम्बूकुमार आठों नववधुओं के साथ साधु दीक्षा ग्रहण कर रहा है। इसलिए आप दीक्षा उत्सव में शामिल हो जाएं।' उस समय न बरनोला निकाला, न बाजे-बजाए, न आवभगत की, उसका कोई अवकाश भी नहीं रहा। केवल दीक्षा पूर्व जुलूस में आमंत्रित किया। संदेश को पढ़ते ही प्रतिक्रिया हुई–'यह क्या हुआ? हम तो सोचते थे कि हमारी कन्याएं वहां जायेंगी और जम्बूकुमार को वश में कर लेंगी, समझा लेंगी पर लगता है कि काम बना नहीं। धोखा ही हुआ है।' माता-पिता पहुंच गए। बैठे, बातचीत शुरू हुई। उन्होंने पूछा-बोलो, क्या बात है?' जम्बूकुमार ने विनत स्वर में कहा–'दीक्षा की तैयारी है।' 'कब?' 'आज और अभी।' 'आज तो ठहरो, कल हो जाए।' 'कल कभी नहीं आता।' पाली में सन् १९६० में चौमासा था। वहां प्रतिदिन एक छोटा लड़का आता, दर्शन करता और कहता 'मैं दीक्षा लूंगा।' हम पूछते-कब लोगे?' उसका उत्तर होता-'आज नहीं, कल।' उसका 'कल' अब तक भी चल रहा है, कभी आया ही नहीं। कल कभी आता ही नहीं है। जम्बूकुमार ने कहा-'दीक्षा कल नहीं, आज हो रही है।' सबने अपनी-अपनी पुत्रियों - की ओर देखा। उन्हें अनुभव हुआ सबके चेहरे उल्लास से भरे हैं, कोई खिन्न नहीं है, उदास और हताश नहीं है। किसी के चेहरे पर विषाद की रेखा नहीं है। सब बहुत प्रसन्न हैं। गाथा परम विजय की ३७२
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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