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________________ कहेगा तो उसमें भी अहित की बात लगेगी। दृष्टिकोण ही गलत है तो ज्ञान सही नहीं होगा। शिष्य का गुरु के प्रति दृष्टिकोण गलत बन गया तो जो भी गुरु कहेगा, शिष्य सोचेगा-कहीं मेरे अहित के लिए तो नहीं कह रहा है। मुझे ऐसा क्यों कहता है? यदि दृष्टिकोण सही है तो फिर गुरु चाहे कुछ भी कहे, उसे लगेगा-मेरे हित के लिए कहा जा रहा है। उत्तराध्ययन सूत्र में इस मनोवृत्ति का सुन्दर चित्रण है खड्डुया मे चवेडा मे, अक्कोसा य वहाय मे। कल्लाणमणुसासंतो, पावट्ठिी त्ति मन्नई।। जो पापदृष्टि है जिसका दृष्टिकोण सही नहीं है, वह गुरु की हितकर बात को भी सम्यक् नहीं लेता। गुरु कोई हित की बात कहते हैं तो शिष्य सोचता है-खड्डुया मे ठोला मार रहा है। चवेडा मे-चांटा जड़ रहा है। अक्कोसा य-आक्रोश कर रहा है, गाली दे रहा है, कड़वी बात कह रहा है। वहाय मे-मुझे ऐसी बात कह रहा है जैसे कोई चाबुक मार रहा है। कल्याण की बात भी बुरी लगती है। क्यों लगती है? गुरु कोई अनिष्ट करना नहीं चाहते पर इसलिए लगती है कि दृष्टिकोण सही नहीं है। दृष्टिकोण सही नहीं होगा तो ज्ञान भी सही नहीं होगा। दृष्टिकोण सही होता है तो फिर हर बात सही लगती है। वह गुरु के कठोर अनुशासन में भी अपना हित और कल्याण देखता है। उसे गुरु की अप्रिय बात भी हितकर प्रतीत होती है। बहुत महत्त्वपूर्ण रत्न है सम्यक् दर्शन। दृष्टिकोण सही है तो ज्ञान सही हो जाएगा। जिस व्यक्ति का दर्शन सम्यक् है, ज्ञान सम्यक् है उसका चारित्र अपने आप सम्यक् हो जायेगा। ये तीन सबसे बड़े रत्न हैं। समुद्रश्री बोली-मां! मुझे और मेरी इन सात बहिनों को ये तीन रत्न मिल गये हैं। प्रियतम ने हमें तीन रत्नों का प्रसाद दिया है। अब कोई आकांक्षा नहीं है, कोई चाह नहीं है। न घर की, न परिवार की, न धन की, न गहनों की और न साड़ियों की हम चाह से मुक्त हैं।' 'मां! आप हमारी भी बात सुनें। केवल प्रियतम को ही नहीं, हमें भी आज्ञा दें। हम भी साध्वी बनना चाहती हैं। सास-श्वसुर दोनों यह सुनकर अवाक् रह गए, सोचा-यह क्या हुआ? एक रात में इतना परिवर्तन कैसे आ गया? सारा दृश्य बदल गया, सारा जगत् बदल गया, सारी दुनिया बदल गई। अब क्या करें? मां बोली-बेटा! मैंने जो बात कही थी वह मेरी भ्रांति थी। पर यह तुम्हारे साथ कौन खड़ा है?' 'मां! इसका नाम है प्रभव। यह चोरों का स्वामी है। बड़ा शक्तिशाली है। बड़े-बड़े राजा लोग इसके नाम से कांपते हैं। इसके सामने कोई आ नहीं सकता, इतनी शक्तिशाली फौज है इसके पास। यह चोरों का सरदार है, राजपुत्र है।' 'जम्बू! राजकुमार यहां कैसे? 'मां! मैंने तुम्हें बताया था कि ये सब चोरी करने आये हैं। ये ५०० चोर सामने खड़े हैं, उनका यह मालिक है।' 'अब क्या होगा? 'मां! तुम इनसे स्वयं पूछो।' ३६८ गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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