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________________ रा गाथा परम विजय की क्या होता है? क्या समाचार आता है? कुछ क्षण बाद उन्हें प्रासाद के भीतर हलचल और कोलाहल-सा सुनाई दिया। उसे सुनकर माता-पिता बाहर आये, बाहर आते ही देखा - घर चारों तरफ मनुष्यों से भरा है। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। इतने लोग कहां से आ गये? कौन हैं ये लोग ? क्यों आए हैं ये लोग ? उनके आश्चर्य का उपशमन हो, उससे पूर्व ही उन्होंने देखा - जम्बूकुमार आ रहा है। उसके साथ एक अनजाना चेहरा है और पीछे-पीछे आठ नव- वनिताएं हैं। जम्बूकुमार ने मां को नमस्कार किया। मां बोली–'जम्बूकुमार! आज यह क्या हुआ है? ये कौन लोग हैं? सारा घर भरा हुआ है। ऊपर-नीचे चारों तरफ आदमी ही आदमी हैं। क्या तुमने बुलाया है?' 'हां, मां! मैंने ही नहीं, आपने भी बुलाया है।' जम्बूकुमार ने मृदु स्वर में उत्तर दिया। ‘अरे, किसने न्योता दिया? विवाह तो कल हो चुका।' 'हां, मां!' "विवाह का भोज भी हो गया । ' 'हां, मां!' 'तो ये क्यों आए हैं?' 'मां! हमने बुलाया है इसलिए आए हैं?' 'कब बुलाया ?' 'रात को।' 'क्या निमंत्रण दिया था ?' 'हां, मां!’ 'किसने निमंत्रण दिया?' 'मां! यह धन तो चोरों के लिए निमंत्रण है ।' ‘ओह!’—मां के मुख से खेदसूचक ध्वनि फूट पड़ी। 'मां! जहां धन है वहां चोर-डाकू के लिए खुला निमंत्रण है। ये धन वैभव के लिए आए हैं।' 'क्या ये सारे चोर हैं?' 'नहीं, अभी तो ये साहूकार हैं।' 'क्या ये व्यापार धंधा करते हैं?' 'नहीं मां।' 'फिर साहूकार कैसे हुए?' ३५६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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