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________________ ___ ADM दरवाजा खोलते हुए प्रभव बोला-'जम्बूकुमार! तुम भी साथ चलो क्योंकि तुम्हारे बिना कुछ होगा नहीं। हाथ-पैर तो तुमने बांध रखे हैं। तुम नहीं चलोगे तो उन्हें छुड़ायेगा कौन?' जम्बकमार ने प्रभव का अनुरोध स्वीकार किया। प्रभव और जंबू दोनों बाहर निकले तब ऐसा लगा कि जैसे अब तक बादल आया हुआ था, चारों ओर अंधकार था। अब बादल हटा है, प्रकाश हो रहा है। जैसे ही जम्बूकुमार ने पैर बाहर रखा, उन सबको देखा तो सबके हाथ हिल गये, पैर भी हिल गये। स्तंभनी विद्या का प्रयोग सम्पन्न हो गया। हाथ मुक्त, पैर मुक्त। मुक्त होते ही वे हाथ से गांठों को उठाने लगे। चोरों ने अपनी ओर आ रहे प्रभव को देखा तो बोले-'स्वामी! जल्दी करो। रात थोड़ी है।' प्रभव बोला-'साथियो! पोटलियां मत उठाओ। पहले हाथ जोड़ो।' 'किसको जोड़ें। जम्बूकुमार की ओर इशारा करते हुए प्रभव बोला-'इस दिव्य कुमार को।' 'क्यों जोड़ें?' 'देखो, ये जम्बूकुमार हैं। इसी ने तुम्हारे हाथ बांधे थे। यह जैसे ही बाहर आया, तुम्हारे हाथ खुल गये। अब तुम इन्हें हाथ जोड़ो, पोटलियों को रहने दो।' प्रभव के निर्देश पर सबने हाथ जोड़कर नमस्कार किया, अभिवादन किया। सबके मन में एक आश्चर्य था कि कैसे स्तंभनी विद्या का प्रयोग हुआ और किसने स्तंभनी विद्या से मुक्त कर दिया पर इस आश्चर्य को समाहित कौन करे? अब वे चलने की स्थिति में हैं। प्रभव बोला-'कुमार! आश्चर्य है कि तुम्हारे आते ही सब मुक्त हो गये। बड़ी विचित्र विद्या है तुम्हारे पास।' प्रभव बोला-'कुमार! पहले तो मैं चाहता था कि यह विद्या ले लूं पर अब मुझे यह विद्या नहीं लेनी है।' _ 'कुमार! आप एक काम करो। मेरे साथियों को समझा दो। तुम्हारी वाणी में कोई जादू है। तुम थोड़ासा उपदेश दोगे तो ये भी प्रतिबुद्ध हो जाएंगे, इनका जीवन भी अच्छा हो जाएगा।' 'कुमार! अब मुझे लगता है कि यह कितना गलत रास्ता है। अब तक मेरे सिर पर गाथा परम विजय की Reema ३४६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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