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________________ (3) / Ah . गाथा परम विजय की 'राजन्! चमार रात-दिन चमड़े के बीच में रहता है इसलिए इसको बदबू नहीं आती। तुम भी रात-दिन सोने के बीच में रहते हो इसलिए सोने की बदबू नहीं आती। अगर मुझे महल में ले चलो तो तुम्हें जैसे यहां बदबू आ रही है मुझे वैसे वहां बदबू आयेगी।' राजा संन्यासी का कथन समझ गया। जहां चेतना बदल जाती है वहां सोना-सोना नहीं रहता। तृणवत् मन्यते जगत-सारा जगत् तृण की तरह हो जाता है, सोना मिट्टी की तरह हो जाता है। यह चेतना का ही तो परिवर्तन है कि जिस वस्तु के प्रति भयंकर आकर्षण था, चेतना के बदलते ही वह नीरस लगने लग जाती है। ___ जम्बूकुमार ने कहा-'प्रभव! मैंने कोई जबर्दस्ती नहीं की है। मैंने तो इनकी चेतना को बदला है। यदि चेतना न बदलती तो भी कोई बात नहीं थी पर बदल गई। इन्होंने सचमुच इस सचाई का अनुभव कर लिया-त्याग, वैराग्य और समभाव की साधना में परम सुख है। एक बार यह अनुभव हो जाता है तो जीवन और चिन्तन की दिशा बदल जाती है।' सकृदपि यदि समतालवं हृदयेन लिहन्ति। विदितरसास्तत इह रतिं स्वत एव वहन्ति।। समता के लव का आस्वाद एक बार भी हृदय से चख लिया, समता के रस का स्वाद एक बार भी अनुभव हो गया और यह पता लग गया कि इसमें रस कैसा है तो फिर कहने की जरूरत नहीं होती। लोग स्वतः ही उस दिशा में गतिशील बन जाते हैं। जम्बूकुमार ने कहा-'प्रभव! इन्होंने इस रस का अनुभव कर लिया है। संयम-साधना में, त्यागतपस्या में कितना रस है-मुझे यह बताने की कोई जरूरत नहीं है।' अब प्रभव मौन हो गया, सारे प्रश्न सम्पन्न हो गये। उसने विनम्रता के साथ सिर झुकाया और बोला-'कुमार! क्या मुझे भी साथ ले लोगे?' 'प्रभव! तुम क्या चाहते हो?' 'मैं भी तुम्हारे साथ साधु बनना चाहता हूं।' आश्चर्य, महान् आश्चर्य। एक समय का राजकुमार और वर्तमान में चोर पल्ली का स्वामी, जो ५०० चोरों को साथ में लेकर जम्बूकुमार की संपदा को चुराने के लिए आया, वह प्रभव कहता है जम्बूकुमार! मैं भी तुम्हारे साथ साधु बनना चाहता हूं। क्या यह आश्चर्य नहीं है? वाल्मीकि का चरित्र कैसा था? वह महान् संत बन गया, रामचरित्र का लेखक बन गया। अंगुलिमाल डाकू था। बुद्ध के सम्पर्क में आया, चेतना का परिवर्तन हुआ और अंगुलिमाल संत बन गया। अर्जुनमालाकार प्रतिदिन सात व्यक्तियों की हत्या करने वाला था। उसका हृदय बदला और वह संत बन गया। यह भी कम विलक्षण घटना नहीं है कि प्रभव जैसा चोरों का सरदार साधु बनने की बात कर रहा है। ___ कुछ लोग कभी-कभी कहते हैं कि बुरे आदमी से बात क्यों करें? वे यह नहीं सोचते कि बुरे आदमी भी कितने अच्छे बन जाते हैं।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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