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________________ h गाथा परम विजय की 'प्रभव! किस प्रकार उपाय को न जानने वाले कठिहारे ने अरणि की लकड़ी का चूस चूस कर दिया पर आग उत्पन्न नहीं कर सका और किस प्रकार एक समझदार आदमी ने अरणि के दो टुकड़ों का घर्षण किया और आग उत्पन्न हो गई । ' 'कुमार! यह व्यक्ति के ज्ञान और समझ पर निर्भर है।' 'प्रभव! काम पर नियंत्रण का उपाय है। अगर तुम उपाय को जानो तो काम पर नियंत्रण किया जा सकता है। उपाय को जाने बिना इस दुर्दम काम पर नियंत्रण संभव नहीं है। उपायज्ञ होना जरूरी है।' 'प्रभव! दूध में से मक्खन निकाला जाता है, अरणी में से आग निकाली जा सकती है और मिट्टी में से सोना निकाला जा सकता है, वैसे ही कोई उपाय जाने तो काम पर नियंत्रण कर सकता है। ' आज का युग होता तो कहा जाता - जमीन में से पेट्रोल निकाला जा सकता है, गैस निकाली जा सकती है और भी अनेक तत्त्व निकाले जा सकते हैं। शर्त यही है कि उपाय को जानने वाला कोई वैज्ञानिक चाहिए। 'प्रभव! तुम अभी उपाय को नहीं जानते । यदि वह उपाय जानो तो नियंत्रण किया जा सकता है। नियंत्रण का उपाय महावीर ने किया था, गौतम ने किया था, सुधर्मा स्वामी ने किया है। सुधर्मा से ही मुझे 'नियंत्रण का मंत्र मिला है।' 'कुमार! कैसे संभव है यह? क्या तुम मुझे बताओगे ?' 'प्रभव! काम नियंत्रण के लिए अपेक्षित है - इंद्रिय विजय प्राणायाम का प्रयोग | यह उपाय है काम विजय का। तुम इंद्रिय विजय प्राणायाम का प्रयोग करो, कामना पर तुम्हारा नियंत्रण हो जायेगा पर शर्त यह है कि तुम्हें रोज इसका अभ्यास करना होगा। तुम यह चाहो कि अभी नियंत्रण हो जाए तो यह संभव नहीं है। पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें प्रयोग कराऊंगा, उपाय बताऊंगा और एक दिन तुम स्वयं मुझे कहोगे - अब मेरा काम पर नियंत्रण हो गया है। ' ‘ओह!' प्रभव ने अपने मस्तक को दोनों हाथों से दबाते हुए कहा। 'प्रभव! तुम इस तथ्य को जानते हो - बकरी हमेशा चरती रहती है।' 'हां, उसकी भूख कभी मिटती नहीं है। ' 'प्रभव! उसको भरपेट खिला दो। दो क्षण बाद उसके सामने चारा लाकर रख दो, वह फिर खाने लग जाएगी? कभी मुंह बंद नहीं करेगी।' 'हां, कुमार! यह उसकी स्वाभाविक प्रकृति है।' 'प्रभव! एक दिन एक राजा के मन में यह कल्पना आई - बकरी के सामने कोई खाने की चीज लाकर रखे और वह न खाये, यह कैसे हो सकता है? राजा ने अपने सांसदों से कहा- कोई भी व्यक्ति ऐसा प्रयोग कर दिखाए कि बकरी के सामने चारा रखा जाए और वह न खाये तो उसको मैं बड़ा पुरस्कार दूंगा । पुरस्कार की बात से अनेक लोगों के मन में लालसा जाग गई। अनेक लोगों ने प्रयत्न किया पर सफल नहीं हुए। बकरी को खूब खिलाया, पिलाया फिर जैसे ही सामने चारा लाकर रखा तो उसका मुंह चारे पर चला गया। ३११
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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