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________________ 1 गाथा परम विजय की यह कह कर प्रभव मौन हो गया। बहुत समर्थ भाषा में प्रभावी ढंग से प्रभव ने अपनी बात रखी। जम्बूकुमार बोले-' प्रभव! तुम जिस भूमिका पर खड़े हो, उसमें तुम्हारी बात सही है। तुम अभी मोह की भूमिका पर खड़े हो, तुम्हारा धरातल अभी मोह का धरातल है । उस भूमिका पर खड़ा होकर कोई भी बोलेगा तो यही बात कहेगा। किन्तु मेरी भूमिका दूसरी है। मेरी भूमिका है वीतरागता की भूमिका, निर्मोह की `भूमिका। मैं मोह की भूमिका से ऊपर उठ गया हूं इसलिए तुम्हारी बात मुझ पर लागू नहीं होती।' 'प्रभव! तुम कहते हो कि जिसके पास शक्ति है और जो भोग नहीं करता, वह मूढ़ है। मैं कहता हूं-जिसके पास शक्ति है और वह शक्ति का भोग में उपयोग नहीं करता किन्तु उन्नति के लिए उपयोग करता है वह मूढ़ नहीं होता, वह महान् होता है।' 'प्रभव! तुम जरा स्वयं को देखो। तुम्हारे पास कितनी शक्ति है पर तुम अपनी शक्ति का क्या उपयोग कर रहे हो? क्या तुमने नीति का यह वचन नहीं सुना? विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति परेषां परिपीडनाय । खलस्य साधोर्विपरीतमेतद्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।। प्रभव! शक्ति को पाना एक बात है और उसका सम्यक् उपयोग करना बिल्कुल दूसरी बात है।' एक आदमी शक्ति का अच्छा उपयोग करता है और एक आदमी शक्ति का बुरा उपयोग करता है। एक आदमी ने विद्या पढ़ी, विद्वान् बन गया । उसने सोचा- मुझे ज्ञान आ गया। अब मैं सबको हरा दूंगा । वह घर पर आया और सबसे पहले अपनी पत्नी से विवाद शुरू कर दिया। पत्नी से पूछा- 'बोलो, तुम क्या जानती हो ?' वह बोली- 'मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूं।' 'तुमने पढ़ाई नहीं की तो क्या किया ? मुझे ऐसी मूर्ख स्त्री नहीं चाहिए।' विद्या विवादाय-विद्या क्या पढ़ी, घर में झगड़ा शुरू कर दिया। एक आदमी को धन मिला। धन में इतना अहंकारी बन गया कि दूसरों को छोटा मानने लग गया। वह गरीब आदमी के सामने भी देखना नहीं चाहता। उसकी आंखें हमेशा ऊंची आकाश में लगी रहतीं। मारवाड़ी कहावत है–उसका मुंह टोडिये (ऊंट का बच्चा) की तरह ऊपर ही रहता है, नीचे जाता ही नहीं है। शरीर की शक्ति, शस्त्र की शक्ति मिली। 'परेषां परिपीडनाय' - दूसरों को सताने के लिए वह शक्ति का दुरुपयोग करता है। अधिकार मिल गया, सत्ता मिल गई और दूसरों को सताता है। यह शक्ति का सम्यक् उपयोग नहीं है। दूसरी श्रेणी के आदमी सज्जन होते हैं। उनकी विद्या 'ज्ञानाय ' - ज्ञान बढ़ाने के लिए होती है । वे अपना ज्ञान बढ़ाते हैं, दूसरों का ज्ञान बढ़ाते हैं। ज्ञान बढ़ाने के लिए विद्या का उपयोग होता है। वे धन का उपयोग अहंकार का पोषण करने के लिए नहीं करते । 'दानाय' - दूसरों का सहयोग करने के लिए, दूसरों की समस्या को मिटाने के लिए होता है। रक्षणाय - वे अपनी शक्ति का प्रयोग दूसरों की रक्षा के लिए करते हैं। ३०५
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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