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________________ गाथा परम विजय की बहुत वर्ष पहले की घटना है। हम दिल्ली में प्रभुदयाल डाबड़ीवाल के घर में ठहरे हुए थे। डॉ. राममनोहर लोहिया आए। वार्तालाप के मध्य उन्होंने कहा- - मुनि नथमलजी ! (आचार्य महाप्रज्ञ) अब मैं आचार्य तुलसीजी से मिलना चाहता हूं।' मैंने कहा–‘आपने तो यह कहा था कि आचार्य तुलसी से और सब मिल सकते हैं किन्तु डॉ. . विधानचन्द्र राय और डॉ. लोहिया कभी नहीं मिलेंगे। आज कैसे परिवर्तन आया ?' लोहियाजी ने कहा- 'आज मन में इच्छा हो गई कि आचार्य तुलसी से मिलना चाहिए।' मैंने कहा- 'अच्छी बात है।' पूज्य गुरुदेव हिन्दू महासभा भवन में विराज रहे थे। मैं वहां गया। मैंने कहा- डॉ. लोहिया अब मिलना चाहते हैं। गुरुदेव को भी आश्चर्य हुआ। डॉ. लोहिया आए, बातचीत शुरू हुई। उन्होंने कहा - 'महाराज ! आप जो अणुव्रत का काम कर रहे हैं, बहुत अच्छा काम है। अब मैंने उसको समझ लिया है। अब आपको एक काम करना होगा। आप देखें - हिन्दुस्तान की स्थिति क्या है? उस समय लगभग ४०-५० करोड़ की आबादी थी। डॉ. लोहिया ने कहा - आज १०-१५ करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनको दो जून खाने को नहीं मिलता। हम इस स्थिति को बदलना चाहते हैं। मैं चाहता हूं कि मुनि नथमलजी को आप गांवों में भेजें। हम सारी स्थिति का सर्वे करेंगे, अध्ययन कर आपको वास्तविकता बताएंगे। आपको स्वयं पता चलेगा - मैं जो कह रहा हूं वह कितना यथार्थ है । ' प्रभव बोला–‘कुमार! इस पृथ्वी पर भोग की सामग्री दुर्लभ है। तुम स्वयं अनुभव करो कि यह भोग सामग्री मिलती कहां है?' आज भी मनुष्य को सब कुछ कहां प्राप्त है? कितने ही लोग ऐसे हैं जिनको मकान सुलभ नहीं है। पूरा कपड़ा भी नहीं मिलता। अमेरिका जैसे सम्पन्न देश में भी हजारों-लाखों लोग फुटपाथ पर सोते हैं। उनके पास भी मकान नहीं हैं, उन्हें कपड़े भी पूरे नहीं मिलते। सर्दी में ठिठुरते हैं। खाने को भी पूरा नहीं मिलता। 'कुमार! भाग्य योग से तुम्हें सारी सामग्री मिली है। तुम्हारा इतना बड़ा मकान, इतनी सम्पदा, इस प्रकार की आठ मनोनुकूल अप्सरा तुल्य पत्नियां, इतना बड़ा परिवार सब कुछ तुम्हें मिल गया, अब सिर में क्यों खुजलाहट आई है?' 'कुमार! तुम बातें तो बड़ी-बड़ी कर रहे हो पर लगता है कि सचाई को नहीं देख रहे हो ? सुनो, मैं तुम्हें बहुत ही तत्त्व की बात बता रहा हूं। दुर्लभं चैकतश्चैकं, वस्तुजातं स्वभावतः । भोक्तुं शक्तिर्न कथंचित्, यथा सत्यपि भोजने । । यह धन-वैभव एक आदमी के लिए दुर्लभ है। कुछ लोग ऐसे हैं, जिनके पास भोजन तो है पर खाने की शक्ति नहीं है। सब भोजन तैयार है, कोई कमी नहीं है पर खा नहीं सकता। कंठ में छाले हैं या भूख मंद हो गई, वह खा नहीं सकता।' हमने भी इस सचाई को देखा है। पूज्य गुरुदेव दिल्ली में एक बड़े उद्योगपति के घर विराज रहे थे। एक दिन उनसे पूछा—'आप दिन भर फोन पर ही बैठे रहते हैं, भोजन कब करते हैं?' ३०३
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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