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________________ गाथा परम विजय की प्रत्येक व्यक्ति सुधार या परिवर्तन चाहता है पर सुधार कब हो सकता है? जब व्यक्ति को यह अनुभव हो जाए कि मेरी कहीं भूल है तब सुधार हो सकता है। जब तक भूल का अनुभव न हो तब तक सुधार या परिवर्तन की बात संभव नहीं है। हम एक-एक व्यक्ति की समीक्षा करें, मीमांसा करें, विवेचन करें तो प्रतीत होगा कि हर व्यक्ति प्रायः अपने आपमें पूर्णता का अनुभव करता है। उसे दूसरे की भूल तो दिखाई देती है पर स्वयं की भूल का पता नहीं चलता। जो व्यक्ति भूल कर रहा है, वह भी दूसरे को उपदेश देने के लिए तैयार रहता है। ___प्रभव ने जम्बूकुमार से पूछा-'कुमार! एक संशय मेरे मन में है। इतनी रात चली गई। यह गोष्ठी क्या चल रही थी? बातचीत क्या हो रही थी? मुझे लगा कुछ वाद-विवाद हो रहा था। सुहागरात तो प्रबल अनुराग और प्रेमाभिव्यक्ति की रात है। नर-नारी के मिलन का अपूर्व क्षण है। क्या पहली रात में ही विवाद शुरू हो गया? अगर तुम्हें कहने में कोई संकोच न हो, कोई कठिनाई न हो तो मुझे बताओ कि झगड़ा क्या है?' ___ 'कुमार! मैं अनुभवी आदमी हूं। बहुत अनुभव है मुझे संसार का। मैं भी तुम्हारे झगड़े को मिटा सकता हूं।' हर आदमी दूसरे के झगड़े को मिटाने को तैयार रहता है, स्वयं चाहे झगड़ा पैदा करता चला जाए। बाजार में कभी कोई दो आदमी लड़ते हैं तो सैकड़ों आदमी झगड़ा मिटाने के लिए इकट्ठे हो जाते हैं। यह पता नहीं कि वे झगड़ा मिटाते हैं या बढ़ाते हैं? ___प्रभव ने कहा-'कुमार! मेरे मन में एक उत्सुकता है और मैं चाहता हूं कि मैं तुम्हारे घर में शांति स्थापित कर दूं।'
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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