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________________ गाथा परम विजय की 'कुमार! मैं विन्ध्याचल पर्वत पर अवस्थित विन्ध्य प्रदेश के राजा का पुत्र हूं।' एक ओर राजपुत्र, दूसरी ओर चोरों का सरदार! जम्बूकुमार को यह सुन कर आश्चर्य हुआ, बोला'आप राजकुमार हैं और चोर पल्ली के पति भी हैं!' 'कुमार! इसका भी एक कारण है।' 'कारण क्या है?' 'कुमार! अपने पिता के हम दो पुत्र हैं। मैं बड़ा पुत्र हूं। मेरा नाम है प्रभव। मेरे एक छोटा भाई है। पिता का अनुराग छोटे के प्रति ज्यादा रहा। उसे स्नेह ज्यादा दिया।' ___ 'कुमार! तुम राजघराने की परम्परा को जानते हो। जो बड़ा पत्र होता है वह राजगद्दी का उत्तराधिकारी होता है और वही राजा बनता है किन्तु पता नहीं, मेरे पिता के मन में क्या आया? उन्होंने स्नेहवश छोटे लड़के को राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया।' 'ओह! यह तो अच्छा नहीं हुआ। 'कुमार! मैं यह अपमान कैसे सहन कर सकता था? मैंने सोचा अब इस राज्य में रहना ही नहीं है।' प्रस्तुत संदर्भ में एक बात ध्यान देने योग्य है। पुत्रों की मनोवृत्ति में जो कुछ बदलाव आता है, मातापिता भी उसका कारण बनते हैं। मां का अधिक झुकाव एक के प्रति, पिता का अधिक झुकाव अन्य के प्रति। वह अतिरिक्त झुकाव एक-दूसरे को शत्रु बना देता है, शत्रुता पैदा हो जाती है। पक्षपात न हो तो सब ठीक-ठाक चलता है। जहां भी पक्षपात हुआ-एक के प्रति ज्यादा और दूसरे के प्रति कम-वहां प्रतिक्रिया पैदा होती है, शत्रुता की भावना बन जाती है। वह फिर मां-बाप को मां-बाप मानने के लिए भी तैयार नहीं रहता। आचार्य ने नयवाद की महत्ता बताते हुए लिखा-नयवाद का किसी भी मान्यता से पक्षपात नहीं है। दृष्टांत की भाषा में कहा-नयेषु तनयेष्विव जैसे पिता का अपने पुत्रों के प्रति पक्षपात नहीं होता, वैसे नय का किसी से पक्षपात नहीं होता। जब पक्षपात नहीं होता तब सब ठीक चलता है पर तटस्थ रहना बड़ा कठिन है। थोड़ा सा झुकाव हुआ, पक्षपात हुआ फिर न्याय नहीं किया जाता। पक्षपात के कारण अन्याय होता है। अन्याय को सब सहन नहीं कर पाते। इस स्थिति में कलह और संघर्ष के बीज की बुआई हो जाती है। ____ अध्यात्म के चार बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं जो व्यवहार का सम्यक् संचालन करते हैं-मैत्री, प्रमोद, करुणा और मध्यस्थता या तटस्थता। जो व्यक्ति अपने व्यवहार को मैत्रीपूर्ण बनाता है, किसी के साथ शत्रुता नहीं रखता उसका मैत्रीपूर्ण व्यवहार दूसरे को प्रभावित करता है और दूसरे व्यक्ति को अपना बना लेता है। दूसरे की विशेषता, दूसरे के गुण को देखकर प्रसन्न होना, यह है प्रमोद भावना। तीसरा है करुणापूर्ण व्यवहार। आज सबसे बड़ी समस्या है क्रूरता की। धन के साथ क्रूरता बढ़ती है। जैसे-जैसे धन बढ़ता है, वैसे-वैसे भीतर में थोड़ी क्रूरता भी बढ़ती चली जाती है। धन के साथ अनेक बुराइयां आती हैं। धन आता है, लक्ष्मी आती है तो साथ में बुराइयां भी पनपती हैं। २८७
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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