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________________ ) 5 मसालावासालानालामावास्ता M गाथा परम विजय की 'महाशय! पट्टी इसलिए बांधी है कि इसको यह पता न चले कि मैं कोल्ह के चारों ओर ही घूम रहा हूं। वह सोचता है कि मैं चल रहा हूं। यह पता नहीं लगता कि मैं यहीं-यहीं चक्कर लगा रहा हूं।' 'इसके गले में यह घंटी क्यों बांध रखी है?' । 'कभी मैं इधर-उधर जाऊं तो पता लग जाए कि बैल चल रहा है या एक स्थान पर रुक गया है।' 'यह खड़ा-खड़ा सिर हिला दे तो?' 'महाशय! यह बैल है, वकील नहीं।' जम्बूकुमार ने कहा-'प्रिये! तुम बुरा मत मानना। मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे आंख पर भी पट्टी बंधी हुई है। तुम घूम-फिर कर एक ही बात की परिक्रमा कर रही हो और वहीं घूम रही हो। क्या दुनिया इतनी छोटी है? कोल्ह का बैल एक वर्ष भी चलेगा तो क्या कहीं पहुंच पाएगा? वह उसी की परिक्रमा करता रहेगा, घर से बाहर भी नहीं जा पायेगा।' ____ प्रिये! तुम भी आंख की पट्टी खोलो, कोल्ह का बैल मत बनो। गले में जो घंटी बज रही है उसको भी निकाल दो। मैं जो कह रहा हूं उस पर ध्यान दो। मैं कोई अनबूझी बात नहीं कह रहा हूं।' 'प्रिये! सत्य बहुत विशाल है। तुमने सच और झूठ की चर्चा शुरू कर दी। तुम पूछ रही हो, कौन-सी कहानी सच्ची और कौन-सी झूठी? मैं यह कहना चाहता हूं कि किसी भी कथा को तुम चाहे झूठ मानो या सच मानो पर मैं जो कह रहा हूं, वह सत्य है और वह सत्य यह है हम केवल इंद्रियों की सीमा में नहीं रहेंगे, केवल भोग में नहीं रहेंगे। उससे परे भी एक दुनिया है, वह है त्याग की दुनिया, चेतना की दुनिया, आत्मा की दुनिया। उसमें सबको जाना होगा। मुझे भी जाना है और तुम्हें भी एक दिन जाना होगा इसलिए इस सचाई को कोई नकार नहीं सकता।' जम्बूकुमार बोला-'प्रिये! शायद तुम सत्य को ठीक से समझ नहीं पा रही हो। तुम सत्य को ठीक से समझो।' मूंद कर आंखें निहारो, सत्य उजला सा लगेगा। खोलकर आंखें निहारो, सत्य धुंधला सा लगेगा।। तुम एक बार आंखें मूंद लो, तुम्हें सत्य उजला-सा दिखाई देगा। जब तक यह बाहरी आंख खुली रहेगी, जब तक यह महल दिखाई देगा, यह दहेज में आया हुआ धन दिखाई देता रहेगा, यह यौवन की दहलीज पर खड़ा जम्बूकुमार दिखाई देता रहेगा, उसका रूप-रंग दिखाई देता रहेगा तब तक सत्य धुंधलाधुंधला-सा लगेगा, साफ नजर नहीं आयेगा इसलिए आंख को मूंद कर देखो। दुनिया का स्वभाव है-आंख को खोलकर देखना। जब इन खुली आंखों से देखोगे तब इंद्रियां, विषय, रंग, रूप दिखाई देगा। जब आत्मा को देखना होता है तब आंख मूंद कर देखना होता है। आंख को बंद किये बिना सचाई का पता नहीं लगता।' __ प्रेक्षाध्यान में एक प्रयोग करवाया जाता है-सर्वेन्द्रिय संयम मुद्रा यानी सब इंद्रियों का संयम करो, प्रतिसंलीनता करो, प्रत्याहार करो। सब इंद्रियों के दरवाजे बंद कर दो। कान में अंगूठे डाले, कान बंद। अंगुलियां आंख पर रख दी, आंख बंद। नाक पर अंगुली रखी, नाक बंद। होंठों पर अंगुली डाली, मुंह बंद।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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