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________________ 277. गाथा परम विजय की कथासूत्र को समेटते हुए कहा-'स्वामी! राजा असमंजस में पड़ गया, वह यह निर्णय नहीं कर सका कि कौन-सी कहानी सच्ची है और कौन-सी झूठी ?' जयंतश्री ने जम्बूकुमार की ओर दृष्टिक्षेप करते हुए कहा - 'स्वामी ! मेरी सातों बहनों ने तथा आपने बहुत कहानियां कही हैं। सबने अपनी बात कहानी के माध्यम से कही है। यह पहले निर्णय करो कि कौनसी कहानी सच्ची है और कौन-सी झूठी ? मैं आज यह निर्णय कराना चाहती हूं। मेरी सात बहनों ने जो कहानियां कहीं और आपने जो कहानियां कहीं इन दोनों में कौन-सी सच्ची है और कौन-सी झूठी ? इसका निर्णय होने के बाद कोई आगे की बात होगी।' जयंतश्री ने स्पष्ट स्वर में कहा-'स्वामी! आपने जो कथाएं कहीं, वे सब सत्य हैं और मेरी बहनों ने जो कथाएं कहीं, वे सब झूठ हैं। ऐसा मत मानिए। आप केवल अपनी बात को मत तानो। यह मत सोचो - मैं कहता हूं वही सही है।' 'स्वामी! इस दुनिया में सचाई का ठेका आपने ही नहीं लिया है। आप सत्य के ठेकेदार मत बनो। इस तथ्य को स्वीकार करो कि दूसरों के पास भी सत्य हो सकता है। तुम्हारे घर में आकाश है तो दूसरों के घर में भी आकाश है। यह मत सोचो - मेरे घर में ही आकाश है, दूसरों के घर में आकाश नहीं है।' 'स्वामी! मिथ्या दृष्टिकोण मत बनाओ। केवल अपनी बात को मत तानो। आपने एक मिथ्या दृष्टिकोण बना लिया और यह मान लिया जो मैंने समझा है, माना है, वह सच है । जो हमारी बहनें कह रही हैं, वह सच नहीं है।' 'स्वामी! दूसरे की बात में जो सचाई है, उस पर भी जरा ध्यान दो। ' जयंतश्री ने मौलिक और तार्किक ढंग से इस प्रकार बात कही कि वातावरण में एक बदलाव आ गया। जो बहनें समझी हुई थीं उनमें भी थोड़ा जोश भर दिया। उन्होंने भी जयंतश्री के कथन का समर्थन किया-'जयंतश्री! तुम बात तो ठीक कह रही हो । प्रियतम आग्रही बन गए हैं। अपनी बात को ही स कुछ मान रहे हैं। दूसरों की बात पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। आदमी को दूसरे की बात पर भी ध्यान देना चाहिए।' बहनों के समर्थन ने जयंतश्री में नए उत्साह का संचार कर दिया। उसने जम्बूकुमार को उत्प्रेरित करते हुए कहा–‘स्वामी! आप नीति पर भी ध्यान दें। नीति का कितना सुन्दर सूक्त है - 'बालादपि सुभाषितं'अच्छी बात बच्चे की भी सुननी चाहिए। कभी-कभी छोटे बच्चे भी बहुत तत्त्व की, सार की बात कह जाते हैं। इसलिए बालक की भी अवज्ञा मत करो, उसकी बात पर भी ध्यान दो। ' अमेध्यादपि कांचनम्-सोना है और वह अकूरड़ी पर पड़ा है तो यह सोच कर मत छोड़ो कि यह अकूरड़ी पर पड़ा है। उसको उठा लो । इसका मतलब है- अच्छी बात जहां से भी मिले उस बात को ग्रहण करो। 'स्वामी! ऐसा लगता है कि आप सारी बात उलट रहे हैं। आप देखिए हमारा न्यायशास्त्र क्या कहता है-आग्रही आदमी युक्ति खोजता है, तर्क और हेतु को खोजता है किन्तु कहां खोजता है? वह वहां २६६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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