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________________ 'राजन्! आप जानते हैं जो बड़ा होता है, शक्तिशाली सेना होती है, वह कमजोर को दबा लेता है। राजा रत्नचल वहां पहुंचा। उसने सारे देश को उजाड़ दिया, नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। सारे खेतों को नष्ट कर olony दिया। फल-फूलों से लदे वृक्ष विनष्ट हो गए। जनता परेशान है। मृगांक राजा अपने किले में बंद होकर बैठा है। इस स्थिति का मुझे पता चला। मैंने सोचा राजा मृगांक अकेला रत्नचूल के साथ लड़ नहीं पाएगा। मुझे 10 अपने बहनोई, अपनी बहिन, अपनी भानजी इन सबकी सुरक्षा के लिए, सहायता के लिए जाना है। मैं वहां जा रहा हूं। जाते-जाते मैंने सोचा-जिनके लिए लड़ाई हो रही है, उनसे मिलता हुआ चला जाऊं।' _ 'राजन्! आपके लिए ही तो लड़ाई हो रही है। यदि आपका विकल्प नहीं होता तो यह लड़ाई क्यों होती? सब कुछ आपके लिए हो रहा है इसलिए मैं आपको उसकी सूचना तो दे दूं।' ___व्योमगति ने वर्तमान विषम परिस्थिति का चित्रण करते हुए कहा-राजन्! राजा मृगांक अब किले के भीतर नहीं रह सकता। उसे बाहर आकर लड़ाई शुरू करनी होगी। मैं वहां जा रहा हूं। युद्ध होने वाला है। भयंकर युद्ध होगा, ऐसी संभावना है।' ___ विद्याधर दो क्षण मौन हो गया, सोचा-श्रेणिक यह कह दे कि चलो, मैं भी साथ चलता हूं। विद्याधर यह सुनना चाहता था किन्तु सब मौन थे। ऐसी खामोशी छा गई कि कोई नहीं बोल रहा है। विद्याधर के सामने लड़ना बड़ा मुश्किल है। एक भूधर और एक विद्याधर। भूधर है पहाड़। विद्याधर है उस पर रहने वाला। एक भूमिचर-भूमि पर चलने वाला। दोनों में मेल कहां है? एक विद्याधर अपनी विद्या से किसी अस्त्र का प्रयोग करता है तो नीचे वाला क्या करेगा? आज भी प्रक्षेपास्त्र आते हैं तो नीचे बैठा गाथा आदमी क्या कर पाता है? कोई उपाय नहीं है। परम विजय की सब मौन बने हुए एक-दूसरे की ओर देख रहे हैं। सम्राट श्रेणिक क्या कहते? विद्याधर मौन, सभासद मौन, सारी सभा मौन। सन्नाटा सा छा गया। । सम्राट श्रेणिक कुछ विश्राम के बाद बोला-व्योमगति! तुम विमान से चले जाओगे। हम चलेंगे अश्व, हाथी और पैदल सेना को लेकर। हमें महीनों लग जाएंगे। तब तक युद्ध पूरा हो जाएगा। हम कहां तक पहुंच पाएंगे? बहुत असमंजस की स्थिति है। क्या करें?' सम्राट श्रेणिक के इस कथन में एक विवशता थी, निराशा थी। मौन का साम्राज्य फिर व्याप्त हो गया। मौन खामोशी के बीच जम्बूकुमार बोला-महाराज! आप आज्ञा दें, मैं जाना चाहता हूं।' अब एक नया आश्चर्य पैदा हो गया। जम्बूकुमार का प्रस्ताव चर्चा का विषय बन गया। सबके मन को यह प्रश्न आंदोलित करने लगा-जम्बूकुमार अकेला करेगा क्या? क्या यह दुस्साहस नहीं है?
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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