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________________ BHIMAANEELINoki a nsmision .ON गाथा परम विजय की ___ एक व्यक्ति धन से गर्विष्ठ है, उसमें धन का अहंकार है। कोई सामान्य आदमी जाए और बातचीत करना चाहे तो वह सामने ही नहीं देखेगा। सामने वाला सोचता है-बड़ा अहंकारी है। सामान्य लोगों से बोलना ही पसंद नहीं करता। एक व्यक्ति ध्यान में बैठा है, ध्यान कर रहा है या आत्मलीन ज्यादा रहता है, अपने में ही खोया रहता है। दूसरा कोई बातचीत करना चाहता है तो वह नहीं बोलता। सामने वाला सोच सकता है यह अहंकारी है, हमसे बोलता नहीं है। जहां अहंकार है वहां भी अहंकार का भान और जहां अहंकार नहीं है, वहां भी अहंकार का भान। इसलिए कहीं-कहीं समझना बड़ा कठिन होता है। ___ जम्बूकुमार में कोई अहंकार नहीं है फिर भी रूपश्री को लगा ये बड़े अहंकारी हैं। किसी की बात मानते ही नहीं हैं, सुनते ही नहीं हैं। यद्यपि उनमें अहंकार नहीं था क्योंकि जिस व्यक्ति में अनुभव जाग जाता है वहां अहंकार रहता नहीं है। अहंकारो धियं ब्रूते, नैनं सुप्तं प्रबोधय। उदिते परमानन्दे, नाहं न त्वं न वै जगत्।। एक दिन अहंकार बुद्धि के पास आया। बुद्धि ने पूछा-'बोलो भाई! तुम क्यों आए हो?' अहंकार बोला-'मैंने सुना है कि तुम अनुभव को जगा रही हो।' 'हां!' 'मेरा परामर्श है-तुम अनुभव को कभी जगा मत देना। यह तुम्हारी मूर्खता होगी, बिना सोचा- समझा काम होगा।' 'तुम्हारे इस कथन का आधार क्या है?' 'जिस दिन तुमने अनुभव को जगा दिया, उस दिन 'नाऽहं'-मैं नहीं बचूंगा और 'न त्वं'-न तुम बचोगी। न अहंकार रहेगा, न बुद्धि का काम रहेगा। 'न वै जगत्'-यह जगत् भी नहीं रहेगा। अनुभव के जाग जाने पर ये सब चले जाएंगे इसलिए मैं कहता हूं-तुम ऐसी मूर्खता मत करो, अनुभव को जमाने की २५८
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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