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________________ loan 'कनकसेना! तुम भी उतनी ही वाक्पटु और कुशल हो। बात को इस प्रकार सजा कर कहती हो कि वह हृदय में बैठ जाए और सीधी गले उतर जाए। तुम्हारे कौशल को देखकर सोचता हं-क्या तुम सबने एक ही कॉलेज में शिक्षा पाई है? और कुछ न भी हो पर तुम्हारी वाक्पटुता के प्रति तो मैं जरूर नत होता हूं। मेरे मन में प्रश्न उठता है-तुमने यह कला कहां से सीखी? अपना पक्ष इस प्रकार प्रस्तुत करती हो कि सामने वाला सोचने के लिए बाध्य हो जाये।' ___'कनकसेना! तुमने अपना पक्ष बहुत अच्छा रखा है और यह कह दिया है-मैं अवसरज्ञ नहीं हूं, अवसर को नहीं जानता। यह तुम्हारा दृष्टिकोण है। पर तुम बताओ अवसर को कौन नहीं जानता? अवसर को हर प्राणी जानता है। कनकसेना! कोयल बहुत मीठा बोलती है, पंचम स्वर में बोलती है किन्तु जब वर्षा ऋतु आती है तब कोयल बोलना बंद कर देती है। कोयल सोचती है-अब मेढकराज बोलने लग गए हैं, उनके सामने मौन करना अच्छा है। जब मेढकों की टरटराहट शुरू हो जाए उस समय कोयल बोले तो वह मिठास कहीं छिप जायेगी-दर्दुराः यत्र वक्तारः तत्र मौनं हि शोभनम्।' ___'कनकसेना! मैं तुम्हारी सब बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा हूं। तुम ज्यादा बोल रही हो और मैं कम किन्तु क्या मैं अवसर को नहीं जानता? अगर अवसर को नहीं जानता तो तुम्हारी बात सुनता ही नहीं, सबको मौन करा देता पर मैं अवसर को जानता हूं। यह भावना का अवसर है। मेरी आठों पत्नियां अभी भावना में बह रही हैं। इस अवसर पर इनकी भावना को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए, कम से कम इनकी बात तो सुन लेनी चाहिए। इनको कहने का अवसर तो मिलना चाहिए। मैं तो अवसर दे रहा हूं। तुम कैसे कहती हो मैं अवसर को नहीं जानता।' ___ 'कनकसेना! तुमने अपनी बात सुना दी और मुझे किसान जैसा अनवसरज्ञ बता दिया। मैं किसी पर आरोप करना नहीं चाहता किन्तु मैं कहता हूं कि मैं किसान जैसा नहीं हैं, जो बिना समय शंख बजाऊं। मैंने ठीक समय पर शंख बजाया है। तुम कहती हो माता-पिता को देखो। क्या मैं माता-पिता को छोड़कर जाने वाला हूं? तुम देखो तो सही, क्या होने वाला है? तुम अभी वर्तमान को देख रही हो, भविष्य को नहीं पढ़ रही हो। मुझे भविष्य सामने दिखाई दे रहा है। जब वह समय आए, मुझे बताना कि मैंने अवसर को जाना है या नहीं?' ____ जम्बूकुमार ने अपनी बात प्रस्तुत करते हुए कनकसेना के कथन के प्रतिवाद की पृष्ठभूमि प्रस्तुत कर दी। ____ रात्रि के नीरव वातावरण में एक ओर राग तथा दूसरी ओर वैराग्य का स्वर प्रखर बना हुआ है। वाद और प्रतिवाद दोनों बराबर चल रहे हैं। कनकसेना ने अपना पक्ष रखा। जम्बूकुमार उसका प्रतिपक्ष प्रस्तुत करेंगे। वह क्या होगा? और उसका परिणाम क्या होगा? गाथा परम विजय की २५८
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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