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________________ जाता N मां ने कहा-'वत्स! इंद्रियों को जीत लेगा, तब सर्वजित् बनेगा। अपनी जीभ को, आंख को, कान को जीत लेगा, ये वशीकृत हो जाएंगी, तब तुम सर्वजित् बनोगे। अन्यथा मनुष्यों को मारकर, जीत कर सर्वजित् .00 नहीं बन सकोगे।' ___ इंद्रियेषु जयं कृत्वा, सर्वजित् त्वं भविष्यसि। ___ जम्बूकुमार ने कहा-'सम्राटप्रवर! सर्वजित् कोई बड़ा नहीं होता। बड़ा वह होता है, जो इंद्रियजयी होता है। मैंने कोई बड़ा काम नहीं किया। यह हाथी तो कुछ भी नहीं है। मैं इससे भी बड़ा काम कर सकता हूं। पर मैं मानता हूं कि यह विजय मेरी कोई बड़ी विजय नहीं है।' श्रेणिक ने पूछा-'कुमार! तुम सामने गए कैसे? हमारे सैनिक डर कर इधर-उधर भाग रहे थे। तुम्हारे पास न कोई शस्त्र, न कोई लाठी, फिर भी तुम डरे नहीं। अभय होकर सामने खड़े हो गए। यह कैसे हुआ?' 'सम्राटप्रवर! मैंने भगवान महावीर का एक पाठ पढ़ा है नो भायए नो वि य भावियप्पा-किसी से डरो मत, किसी को डराओ मत। मैं इस पाठ को जी रहा हूं इसलिए मुझे कोई भय नहीं लगा।' 'महावीर ने कहा-मा भेतव्वं डरो मत किसी से। मैंने इस पाठ को पढ़ा नहीं है, जीया है, जी रहा हूं। मुझे डर किस बात का?' 'सम्राटप्रवर! अभी जो हाथी वश में हुआ है, उसका पहला रहस्य है अभय। मन में तनिक भी भय की रेखा नहीं। गाथा जब भय की रेखा खिंचती है, तब पचास प्रतिशत शक्ति तो परम विजय की उसी समय मर जाती है। जिसकी शक्ति आधी रह गई, वह क्या विजयी बनेगा? कैसे सफल होगा?' 'सम्राटप्रवर! मैंने दूसरा प्रयोग किया मैत्री का। मैं क्यों डरता?' 'महावीर ने बतलाया-मित्ती मे सव्वभूएसु-सबके साथ मेरी मैत्री है। आय तुले पयासु-सब जीवों को अपने समान समझो।' __ 'मैंने हाथी को अपने समान समझा. उसे अपना मित्र बनाया। जैसे ही मैंने हाथी को देखा, मैत्री का प्रयोग शुरू कर दिया-तुम मेरे मित्र हो, मैं तुम्हारा मित्र हूं। आज हम दोनों मित्र मिल रहे हैं। हम प्रेम के साथ मिलेंगे। मेरा मैत्री का संकल्प प्रबल बना और उस संकल्प की ऊर्जा तरंगें निकलनी शुरू हो गईं। जैसे ही वे हाथी के पास पहुंची, हाथी का क्रोध/आवेश शांत हो गया। मैत्री का भाव प्रस्फुटित हो गया। वह मेरा मित्र RE SAR SERIC -- SHARE RAMAYANATHAHRUKHARA PAURaman SamagrmypaMI N ANDINI ford S
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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