SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा परम विजय की जम्बूकुमार करे विचार रे म्हें शीलव्रत आदर्यो। ते खबर नहीं म्हारे सासरे ए।। ओ मोटो दगो साख्यात रे, म्हें करूं छू जाणतो। ते श्रेय नहीं छे मो भणी ए।। एक ओर विवाह का उपक्रम, दूसरी ओर दीक्षा का संकल्प। कन्याओं के माता-पिता यह सोच रहे हैं कि हमारी कन्या को अच्छा वर और अच्छा घर मिल रहा है। वे सुखी रहेंगी। कन्याएं यह सोच रही हैं-ऐसा पति सौभाग्य से मिलता है। हमारा गृहस्थ जीवन बहुत सुखदायी होगा। संसार का सुख सतत मिलता रहेगा। मैं प्रथम मिलन के क्षण में ही दीक्षा का संकल्प बताऊं। विवाह के पहले दिन, सुहागरात में ही उनके सपनों का संसार उजड़ जाएगा। यह अच्छा नहीं है। यह साक्षात् दगा है। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। यह धोखा देना मेरे लिए उचित नहीं है। आचार्य सोमप्रभ ने लिखा मुग्धप्रतारणपरायणमुज्जिहीते, यत्पाटवं कपटलंपटचित्तवृत्तेः। जीर्यत्युपप्लवमश्यामिहाप्यकृत्वा, नापथ्यभोजनमिवामयमायतौ तद्।। व्यक्ति धोखा करता है, वह समझता है कि मैंने बहुत अच्छा किया। मैंने उसे ठग लिया। किसी को कोई पता नहीं चला। घर में मिष्टान्न आया। व्यक्ति ने अकेले खा लिया। व्यक्ति सोचता है मैंने इस प्रकार खाया कि किसी को पता नहीं चला। वह यह नहीं सोचता कि और किसी को पता नहीं है पर तुम्हारे पेट और तुम्हारी आंतों को तो पता है, तुम्हारे पाचनतंत्र को तो पता है। तुमने जो अपथ्य भोजन खाया है, उसके परिणाम को कैसे रोकोगे? वह बीमारी करेगा। आवेशवश आदमी अकृत्य कर लेता है, आवेश और मानसिक असंतुलन की स्थिति में अनेक मनुष्य नींद की गोलियां ले लेते हैं, और भी कुछ आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। क्यों किया? क्या किया? यह उस समय पता न चले किन्तु उसके परिणाम से वह कैसे बच सकता है? उस प्रवृत्ति का पता दूसरों को न चले पर परिणाम का पता दूसरों को भी हो जाता है। ___ जम्बूकुमार ने सोचा-मैं धोखा करना नहीं चाहता। मैं बात को साफ नहीं करूं तो यह धोखा होगा। वह अपने कक्ष में गया, एकांत में चिन्तन किया। वह एक निर्णय पर पहुंच गया। उसने संदेशवाहक को बुलाया, बुलाकर कहा-तुम्हें एक काम करना है। संदेशवाहक ने विनत स्वर में कहा-'जैसी आपकी आज्ञा।' 'आज्ञा यह है-पिताश्री ने जिन आठ परिवारों में मेरा संबंध किया है, तुम उनके प्रासाद में जाओ। वहां मेरा एक संदेश तुम्हें देना है।' 'हां, क्या संदेश है?' 'मैं तुम्हें अभी भोज पत्र पर लिखकर देता हूं।' जम्बूकुमार ने संदेश-पत्र लिखा-'आदरणीय श्रेष्ठिवर! मैं मुनि बनना चाहता हूं। एक ओर मैंने ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकर कर लिया है, दूसरी ओर माता-पिता ने मेरा संबंध आपकी कन्या के साथ निश्चित कर दिया
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy