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________________ अव्यक्त भाषा में, मौन भाषा में कहने लगा-आओ कुमार! बैठो सवारी करो, मैं तैयार हूं।' तत्काल जम्बूकुमार ने दांतों पर पैर टिकाया और हाथी पर बैठ गया। उन्मदं विमदीकृत्य, हस्तिनं क्षणमात्रतः। आरुरोह ततस्तूर्णं, दत्वा पादौ च दंतयोः।। सबने आश्चर्य के साथ देखा। सैनिक स्तब्ध रह गए। उन्होंने सोचा-सामने जाकर खड़ा रहने से ऐसा होता तो हम भी चले जाते, हमें भी श्रेय मिलता। हम तो बाजी चूक गए, हार गए। राजा को संवाद मिला-'हाथी वश में हो गया है।' राजा ने पूछा-'किस सैनिक ने किया? कौन योद्धा था? उसे पुरस्कार दिया जाएगा।' 'महाराज! कोई सैनिक नहीं कर सका।' 'किसने किया?' 'एक अज्ञात युवक ने किया। हम उसका नाम नहीं जानते।' 'उसके पास क्या था?' 'कुछ नहीं था।' 'तो कैसे किया?' 'वह रास्ते में खड़ा हो गया। उसके पास आते ही हाथी का मद समाप्त हो गया। वह शिष्य बन गया। पापं शांतम्-सब शांत हो गया, बिल्कुल आश्चर्य घटित हो गया।' ___ जम्बूकुमार हाथी पर आरूढ़ है, बहुत मस्ती के साथ बैठा है। चारों ओर एक आश्चर्यपूर्ण प्रश्न खड़ा हो गया-किसने हाथी को वश में किया? कौन है वह? गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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