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________________ जम्बूकुमार के मन में एक आंदोलन शुरू हो गया आज यदि वह दीवार इधर गिर जाती तो क्या होता? मन में इतना प्रबल संवेग जागा, एक उद्वेलन हो गया अब तो मुझे अवश्य ही मुनि बनना है। सुधर्मा स्वामी से संकल्प लेकर आया था, वह संकल्प अब प्रबल संवेग बन गया। निमित्त मिलते हैं तब संवेग प्रबल हो जाता है। एक भाई आया, बोला-'आचार्यश्री! स्थिति ऐसी आई कि बचने की कोई आशा नहीं रही। उस भीषण दुर्घटना में बच गया तो मन में संकल्प आया-मुझे कोई न कोई बड़ा काम करना है, किसी काम में लगना है।' हर आदमी के मन में किसी अप्रत्याशित घटना के बाद एक नई प्रेरणा जागती है। जम्बूकुमार के मन में एक प्रबल प्रेरणा जागृत हो गई। संदेह, आंदोलन, हलचल, संकल्प और प्रेरणा-सबको साथ लेकर उसने घर में प्रवेश किया। मां ने पूछा-'जम्बूकुमार! सुधर्मा स्वामी के दर्शन हो गये?' 'हां मां! बहुत अच्छी तरह से हो गए।' 'तुमने प्रवचन सुना?' 'हां मां!' 'कैसा लगा प्रवचन?' 'मां! बहुत अच्छा लगा।' 'वत्स! प्रवचन का सार क्या है?' 'मां! प्रवचन सुनना और उसका निष्कर्ष निकालना, सार निकालना बहुत सार्थक होता है। मैंने सार भी निकाला है, निष्कर्ष भी निकाला है। मैंने दही को बिलोया है, मथा है। उसमें से नवनीत निकाला है।' 'तुमने क्या सार निकाला?' 'मां! अभी मैं सार के चिन्तन में ही चल रहा हूं। क्या तुम उसका सार जानना चाहती हो?' ___हां! मैं तुम्हारे मुख से गुरु के अमृत वचनों का सार सुनना चाहती हूं।' _ 'मां! सुधर्मा स्वामी ने जो उपदेश दिया, संदेश दिया, उसका सार यह है-असारे खलु संसारे सारं संयम-साधनम् असार संसार में संयम की साधना ही सार है। यह सार मैंने पाया है।' गाथा परम विजय की DoganMine RANI pic ११४
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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