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________________ गाथा परम विजय की इसीलिए प्राचीन व्याख्यानों में भवान्तरों अथवा जन्मान्तरों का उल्लेख मिलता है। जन्मान्तर और भवान्तर का ज्ञान होता है तो चेतना बदल जाती है। कितना विचित्र है संसार, संबंधों का मायाजाल। जम्बूकुमार के मन में इसे लेकर एक अन्तर्द्वन्द्व चल रहा है। इसी चिन्तन और अंतर्द्वन्द्व में संध्या का समय हो गया। रात्रि में भी यही चिन्तनधारा बनी रही। रात्रि में इस संकल्प के साथ सोया-मुझे आत्मोपलब्धि करना है, आत्मा को पाना है। जम्बूकुमार प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही जागृत हो गया। ब्रह्ममुहूर्त में जागना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। यह जीवन से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है-आदमी सोये तो कैसे सोये और जागे तो कैसे जागे? सोने से पहले आस्थावान व्यक्ति अपने इष्ट का स्मरण करता है। यदि कोई जैन श्रावक है तो नवकार मंत्र का स्मरण करके सोता है। कोई व्यक्ति अपने गुरु का स्मरण करके सोता है, कोई लोगस्स का पाठ करके सोता है। जिसको रात्रि में स्वप्न बहुत आते हैं अथवा बुरे सपने आते हैं वह सात लोगस्स का ध्यान करके सोये तो स्वप्न की समस्या न रहे। सोने का एक क्रम होता है। जो साधना में आगे जाना चाहता है, वह कायोत्सर्ग करके सोता है। यदि किसी को नींद नहीं आती है तो वह उज्जायी प्राणायाम करके सोता है। जागने की भी प्रशस्त विधियां हैं। एक समझदार व्यक्ति देखेगा कि जागते ही सबसे पहला विचार कौनसा आया? क्या अच्छा विचार आया? बुरा विचार आया? काम का विचार आया अथवा निकम्मा विचार आया? अगर उस पर जागरूक रहता है तो बहुत अच्छा विकास कर लेता है। जागरूकता का दूसरा बिन्दु है-उठने के बाद क्या करना चाहिए? लोग उठते ही अपनी अंगुलियां देखते हैं, हाथ को देखते हैं, हाथों को मुंह पर रगड़ते हैं। ROma कहा गया कराग्रे वसति लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती। हाथों की अंगुलियों में लक्ष्मी बसती है, इसलिए हाथ को देखते हैं, मुंह पर हाथ फेरते हैं। जिन व्यक्तियों में अध्यात्म के प्रति आस्था है, वे अपने इष्ट का स्मरण करते हैं, वीतराग का स्मरण करते हैं, नमस्कार महामंत्र और भक्तामर स्तोत्र का पाठ करते हैं। यह सारी उठने से जुड़ी प्रक्रिया है। जम्बूकुमार उठा, उठते ही पहला विचार यही आया मैं आत्मा का साक्षात्कार कैसे करूं? कैसे मैं सत्य को उपलब्ध करूं? इस चिंतन और विचार में मग्न हो गया। सूर्योदय होने वाला था। प्रभात का समय। चारों तरफ नगर में मंगलपाठक मुनादी कर रहे हैं। जम्बूकुमार के कानों से वे स्वर टकराए। उसने गवाक्ष से नीचे देखा-सूर्योदय के साथ ही कोई हलचल हो रही है। लोगों का आवागमन शुरू हो गया है। एक ।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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