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________________ मग्गपहावणा मार्ग प्रभावना क्या है? यह कहते हैं रयणत्तयं हि मग्गो तं पडिवजिऊण रोचेदि पुणो। सो भवियो खल मग्गी आसिय तं पहावणा मग्गस्स॥१॥ रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग है मारग अन्तर आतम का इसको प्राप्त करे जो रुचि से तिमिर भगाए आतम का। भव्य वही जो इस मारग पर हो आरूढ, वही राही उसी भरोसे मोक्षमार्ग की नित होती है बड़वाही॥१॥ अन्वयार्थ : [रयणत्तयं] रत्नत्रय [हि] ही [ मग्गो] मार्ग है। [तं] उसको [पडिवज्जिऊण] प्राप्त करके [पुणो] पुनः [रोचेदि] रुचि करता है [सो भवियो] वह भव्य को [आसिय] आश्रय करके [ मग्गस्स पहावणा] मार्ग की प्रभावना है। भावार्थ : हे मोक्षमार्गिन् ! रत्नत्रय ही मोक्ष का मार्ग है। यह मार्ग भीतर है, बाहर नहीं है। बाहर दिखने वाले क्रियाकलाप आत्मा का मोक्षमार्ग नहीं है। यह मार्ग आत्मा से सम्बन्ध रखता है। जो क्रिया-कलाप मोक्षमार्ग की पहिचान हैं उन क्रियाओं को अज्ञानी, मोही जीव जानते ही नहीं हैं। ऐसी स्थिति में उन अज्ञानी जीवों के मन को जो रुचता है उसे ही वह धर्म मान लेते हैं। जो भव्य रत्नत्रय का आश्रय लेकर क्रियावान् दिखता है, उसको ही मोक्षमार्ग कहा है। हे भव्य! संसार से मुक्ति की भावना प्रत्येक आत्मा की नहीं होती है। संवर-निर्जरा करने के लिए मार्ग पर चलने की भावना भी प्रत्येक की नहीं होती है। संवर-निर्जरा तत्त्व का जो इच्छुक होगा वह साधक ज्ञान-ध्यान की प्रधानता रखता है, वही मोक्षमार्गी है। आत्मन् ! रत्नत्रय धारण कर लेना और बात है और रत्नत्रय में रुचि रखना और बात है। रत्नत्रय की प्रकृष्ट भावना ही प्रभावना है। रत्नत्रय तो दिखे नहीं और प्रभावना ही प्रभावना दिखे तो समझना यह स्वनाम की लोकैषणा है। साधक मार्ग की जब प्रभावना करता है तो मार्ग पर चलने वाले लोगों को उससे बल, साहस मिलता है। जीवादि पदार्थों का श्रद्धान व्यवहार सम्यग्दर्शन है और आत्मा का श्रद्धान निश्चय सम्यग्दर्शन है। जीवादि पदार्थों का ज्ञान व्यवहार ज्ञान है और आत्मा का मात्र संवेदन होना निश्चय सम्यग्ज्ञान है। राग आदि का परिहार करना व्यवहार चारित्र है और आत्मा का आत्मा में स्थिति हो जाना निश्चय चारित्र
SR No.034024
Book TitleTitthayara Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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