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________________ सिं खलु पडिरूवं सुद्धं तहणिव्वियार णिप्पडयं । झाणं पुज्जाकरणं दू सम्मत्त - विसोहीए ॥ ५ ॥ श्री जिनेन्द्र की जिन प्रतिमाएं शुद्ध सदा हैं जिनवर सी सौम्य रूप हैं निर्विकार हैं वस्त्र रहित हैं मुनिवर सी । भव्य जीव तुम नित ही इनका पूजन, वन्दन ध्यान करो समकित भाव विशुद्ध बनाके आत्मशुद्धि का भान करो ॥५ ॥ अन्वयार्थ : [ तेसिं ] उन तीर्थंकर केवली के [ पडिरूवं ] प्रतिरूप [ खलु ] निश्चित ही [ सुद्धं ] शुद्ध हैं [ तह ] तथा [ णिव्वियार णिप्पडयं ] निर्विकार, निर्वस्त्र हैं । [ झाणं ] उनका ध्यान [ पुज्जाकरणं ] पूजा करना [ सम्मत्त विसोहीए ] सम्यक्त्व की विशुद्धि में [ हेदू] हेतु हैं । भावार्थ : प्रतिरूप अर्थात् जिनबिम्ब, प्रतिमाएं । वर्तमान में तीर्थंकर केवली का सद्भाव नहीं है । उन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं भी पूज्य हैं। पंचकल्याणक की प्रतिष्ठा, मन्त्रों पूजा से उन प्रतिमाओं में सद्भाव स्थापना होती है जिससे प्रतिमा भी कर्म क्षय का हेतु बनती हैं। वह जिनबिम्ब शुद्ध होते हैं । वह जिनबिम्ब नेत्र, मुख आदि के विकार से रहित होते हैं तथा कपड़ा, वस्त्र, आभूषण आदि से रहित होते हैं । ऐसे जिनबिम्बों का ध्यान, उनकी पूजा, अर्चना करना सम्यक्त्व की विशुद्धि का कारण है। चैत्य भक्ति में आचार्य पूज्यपाद इन चैत्य, चैत्यालयों की वन्दना से विशुद्धि बढ़ाते हैं। चैत्य भक्ति में बहुत बार ऐसे भाव वन्दना का फल बताते हुए कहे हैं । ‘प्रणमाम्यभिरूपमूर्तिमंति प्रतिरूपाणि विशुद्धये जिनानाम्।' चै. भ. १५ मनोहर रूप, आकार वाले जिनेन्द्र देव की प्रतिमाओं को मैं विशुद्धि के लिए नमस्कार करता हूँ। इसी तरह 'कीर्तयिष्यामि चैत्यानि यथाबुद्धि विशुद्धये ।' चै. भ. १७ मैं जिन चैत्यों का कीर्तन अपनी बुद्धि अनुसार विशुद्धि के लिए करूँगा । 'प्रतिमाः कल्मषशान्तयेऽभिवन्दे- ' चै. भ. १४ जिन प्रतिमाओं की वन्दना से पाप की शान्ति होती है I 'चैत्यानामस्तु संकीर्तिः सर्वास्रवनिरोधिनी - ' चै. भ. २३ जिन चैत्यों की स्तुति से समस्त आस्रवों का रुकना होता है। इसलिए जिन चैत्यों की वन्दना, स्तुति, ध्यान, पूजा आदि सम्यक्त्व अन्य भी कारण हैं, वह कहते हैं
SR No.034024
Book TitleTitthayara Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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