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________________ समानता ही होती है। जैसे किसी मशीन में तीन प्रकार के कटर लगे हों और आगे-आगे के कटर अधिक-अधिक पैने हों ऐसी ही स्थिति इन तीन प्रकार के परिणामों की जानना। हे कर्मविलिप्तात्मन् ! ये अनिवृत्तिकरण परिणाम ही बहुत तीक्ष्ण पैनी धार के समान हैं जो कर्मों का घात करने में समर्थ होते हैं। मोक्षगामी जीव को इन परिणामों को कई प्रसंगों में अलग-अलग समय पर प्राप्त करना होता है। सर्वप्रथम तो अनादि मिथ्यादृष्टि जीव इन परिणामों को तब प्राप्त करता है जब वह उपशम सम्यक्त्व के अभिमुख होता है। इसी प्रथम उपशम सम्यक्त्व को प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते हैं। प्रथम बार सम्यग्दर्शन का लाभ इन्हीं करण परिणामों से प्राप्त होता है। दूसरी बार इन परिणामों की प्राप्ति अनन्तानुबन्धी कषाय की विसंयोजना के समय होती हैं। इन परिणामों के बिना अनन्तानबन्धी कषाय की सत्ता का अभाव नहीं होता है। तीसरी बार क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के समय इन अनिवृत्तिकरण परिणामों की कृपा चाहिए पड़ती चौथी बार द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के समय इन अनिवृत्तिकरण परिणामों का प्रसाद चाहिए। पांचवी बार चारित्र मोहनीय का उपशम करते समय और छठवीं बार चारित्र मोहनीय का क्षय करते समय इन परिणामों की प्राप्ति होती है, तभी यह उपलब्धियाँ होती हैं। संसार की स्थिति का घात करने वाला चौथा कारण केवली समुद्घात है। अरिहन्त केवली ही इस परिणाम से नाम, गोत्र और वेदनीय कर्म की स्थिति आयु कर्म के बराबर कर लेते हैं। केवली भगवान् का वह समुद्घात आयु का अन्तर्मुहूर्त काल अवशिष्ट बचने पर होता है। यह समुद्घात चार प्रकार का होता है। दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण। इस प्रक्रिया में क्रमश: पहले तो एक-एक समय में आत्म प्रदेशों का विस्तार होता है फिर प्रत्येक समय में संकोच होता हुआ आठवें समय में शरीर में आत्मा के प्रदेश प्रवेश कर जाते हैं। जिस प्रवचन(आगम) में इन चार कारणों को बताया गया है, उस प्रवचन को मैं भक्ति से प्रणाम करता हूँ। उसी प्रवचन की महिमा और कहते हैं जस्स य भत्तिविजुत्तो समणो कदा ण होदि एयग्गमणो।
SR No.034024
Book TitleTitthayara Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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