SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धम्मका aa 83 (६) शक्ति त्याग भावना दूसरों की प्रीति के लिए अपनी वस्तु का समर्पण करना दान है। वह दान आहार, औषधि शास्त्र और अभय के भेद से चार प्रकार का है। अनगारों के लिए नवधा भक्ति पूर्वक खाद्य, स्वाद्य, लेय और पेय के भेद से चार प्रकार की वस्तु का प्रदान करना आहार दान है। उपवास व्याधि, परिश्रम के क्लेश के द्वारा पीड़ित हुए पात्र को पथ्य आहार प्रदान करना औषधदान है। स्व और पर के अज्ञान का विनाश करने के लिए जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहे गये आगम का लेखन करना, अन्य के हाथ में वह शास्त्र प्रदान करना, शास्त्र दान अथवा ज्ञान दान है। जीव रक्षा के निमित्त पिच्छी, कमण्डलु आदि उपकरणों को प्रदान करना अभय दान अथवा उपकरण दान है। यह शक्ति त्याग भावना श्री षट्खण्डागम सूत्र में 'प्रासुकपरित्याग' के नाम से उल्लिखित है। आचार्य श्री वीरसेन देव कहते हैं कि- "दया, बुद्धि से साधुओं का ज्ञान, दर्शन, चारित्र का परित्याग रूप दान प्रासुक परित्याग है । और यह प्रासुक परित्याग नाम का दान गृहस्थों में सम्भव नहीं है। क्योंकि उनमें चारित्र अभाव रहता है। रत्नत्रय का उपदेश भी गृहस्थों में नहीं होता है क्योंकि उनके लिए दृष्टिवाद आदि उपरिम सूत्रों के उपदेश देने के अधिकार का अभाव है। इसलिए यह कारण महर्षियों के लिए ही होता है। इस प्रकार के वचन से सिद्ध होता है कि रत्नत्रय का उपदेश भी प्रासुक का परित्याग है क्योंकि वह निरवद्य होता है। सत्य ही है I "जो प्रासुक ही भोजन करता है प्रासुक मार्ग से ही चलता है और प्रासुक मार्ग से ही अपेक्षा सहित (कारणवश ) चलता है अर्थात् विचरण करता है उस साधु के वचन ही प्रासुक परित्याग नाम से कहे जाते हैं। " इसलिए रत्नत्रय का दान ही वास्तव में महा दान है। वह दान साधुओं के द्वारा और केवली भगवंतों का द्वारा ही दिया जाता है। श्रावक भी श्रमणों के लिए आहार, औषधि आदि चारों प्रकार का दान प्रासुक ही देता है। इसलिए श्रावक भी प्रासुक परित्याग नाम की भावना भाता है। उत्तम पात्र को दिये गये दान के फल से श्रावक उत्कृष्ट भोगभूमि को प्राप्त होता है। यदि वह श्रावक मिथ्यादृष्टि हो तो उत्कृष्ट भोगभूमि पाता है और अगर सम्यग्दृष्टि हो तो वह नियम से वैमानिक देव होता है । मध्यम पात्र को दिये गये दान के फल से यदि वह श्रावक मिथ्यादृष्टि है तो वह मध्यम भोग भूमि को प्राप्त करता है और यदि सम्यग्दृष्टि है तो नियम से वैमानिक देव होता है। जघन्य पात्र को दिये गये दान के फल से यदि वह श्रावक मिथ्यादृष्टि है तो जघन्य भोभूमि को प्राप्त करता है और यदि सम्यग्दृष्टि है तो वह नियम से वैमानिक देव होता है। कुपात्र दान से कुभोगभूमि की प्राप्ति होती है और अपात्र को दिया गया दान निरर्थक होता है। चार प्रकार के दानों में प्रत्येक दान समय-समय पर महान फल प्रदान करने वाला होता है। एक समय राजा वज्रजंघ श्रीमती रानी के साथ चारण युगल मुनियों को जंगल में आहार प्रदान दिये। उसी समय पर मंत्री, पुरोहित, सेनापति और श्रेष्ठी
SR No.034023
Book TitleDhamma Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherAkalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
Publication Year2016
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy