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________________ धम्मकहा 8873 (२) विनय सम्पन्नता मोक्षमार्ग के साधनभूत सम्यग्दर्शन आदि गुणों में और उन गुणों को धारण करने वाले पुरुषों में आदर होना विनय है। उस विनय के दर्शन विनय, ज्ञान विनय, चारित्र विनय, तप विनय और उपचार विनय इस तरह ५ भेद होते हैं। उसमें जिनेन्द्र देव के द्वारा कहे हुए सूक्ष्म तत्त्वों में शंका आदि नहीं करना ,जिनधर्म में प्रीति धारण करना, वीतराग देव,धर्म और गुरुओं में अचल श्रद्धान करना दर्शनविनय है । शब्दाचार, अर्थाचार, उभयाचार, कलाचार उपधानाचार, अनिह्नवाचार, बहुमानाचार, विनयाचार के भेद से आठ प्रकार के ज्ञानाचार के द्वारा सिद्धान्त, सूत्र और अध्यात्म आदि ग्रन्थों का पढ़ना तथा पढ़ाना ज्ञान की वृद्धि का कारण होने से और चित्त की विशुद्धि का कारण होने से ज्ञानविनय है। व्रत ,समिति ,गुप्ति पालन में प्रमाद का परिहार करना,कषाय और इन्द्रिय चोरों के द्वारा सर्वकाल अपनी आत्मा की रक्षा करना चारित्रविनय है। बारह प्रकार के तपों में सदा आदर होना तपस्वी जनों में विनय और भक्ति होना तपविनय है। कायिक,वाचिक और मानसिक भेद से उपचार विनय तीन प्रकार की होती है। उसमें (१) कायिक विनय सात प्रकार की है१. गुरू के समक्ष खड़े हो जाना। २. गुरू को प्रणाम करना।। गुरू को आसन प्रदान करना। गुरू को पुस्तक आदि प्रदान करना। सिद्ध आदि भक्ति के द्वारा वन्दना करना। उनके आगमन पर अपने आसन को छोड़ देना। ७. उनके चले जाने पर कुछ दूर तक उनके पीछे-पीछे चलना। (२) वाचनिक विनय चार प्रकार की होती है धर्म सहित वचन बोलना हितभाषण है। २. अल्प शब्दों के साथ बहुत अर्थ से भरे हए वचनों का होना मित भाषण है। ३. कारण सहित वचन होना परमित भाषण। ४. आगम के अनुसार वचन बोलना ये अनुवीचि भाषण है। (३) मानसिक विनय दो प्रकार की है१.पाप आस्रव के कारणों से मन को रोकना और २. धर्मध्यान में मन की प्रवृत्ति करना यह दो प्रकार की मानसिक विनय है।
SR No.034023
Book TitleDhamma Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherAkalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
Publication Year2016
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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