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________________ तब चाणक्य संकल्प करता है कि मैं नन्द वंश का समूल विनाश करूँगा। जो नन्द के राज्य को चाहता है वह मेरे पीछे आये। ऐसा कहता हुआ वह बाहर निकल गया। एक पुरुष उसके पीछे लग जाता है। उसकी सहायता से वह निकटवर्ती राजाओं से मिल गया। धीरे-धीरे धन प्रदान करके नन्द के मन्त्री और योद्धाओं का उसने भेद कर दिया। एक दिन नन्द असहाय होकर के मारा गया। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को राजसिंहासन पर स्थापित करके बहुत काल तक राज्य किया। बाद में महीधर मुनि के समीप धर्म श्रमण करने से वह वैराग्य को प्राप्त हुआ। दिगम्बर मुनि होकर के चाणक्य ५०० शिष्यों का गुरू हुआ। बहुत काल तक विहार करके दक्षिण दिशा में वनवास देश के क्रौन्च नगर में आया। वहाँ एक गोष्ठ में पादोपयान मरण धरण किया। नन्द के मरण के उपरान्त उसका सुबन्धु नाम का मन्त्री चाणक्य पर क्रोध धारण करता हुआ क्रौन्च पुरी के सुमित्र राजा के पास आकर रुक गया था। सुमित्र राजा मुनिराजों की वंदना करके वापस लौटे। बाद में सुबन्धु चाणक्य को देखकर पूर्व वैर के साथ वहाँ गया। वह वहाँ कण्डे की आग जलाकर के आ गया। उस अग्नि की ज्वाला में उपसर्ग के साथ में वह मुनि महाराज जल गये, और समाधिमरण से सभी सिद्धि को प्राप्त हुए। कहा भी है "गोष्ठ में चाणक्य नामक मुनि ने प्रयोपवेशन धारण किया। सुबन्धु नामक राजमन्त्री उसका वैरी था उसने गोमय कण्डों की राशि में चाणक्य मुनि को आग लगाकर जलाया तो भी उन्होंने रत्नत्रय की आराधना का त्याग नहीं किया। वे उत्तमार्थ को प्राप्त हुए।"(भ.आ. ५५६) आयु कर्म की परतन्त्रता से ही सभी जीवों को संयोग होता है। जो पुरुष इस दृढ़ स्नेह के बंधन को छोड़ता है वह लोक में दुर्लभ है॥१५॥ अ.यो.
SR No.034023
Book TitleDhamma Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherAkalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
Publication Year2016
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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