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________________ (१२) जयकुमार की कथा कुरुजांगल देश में हस्तिनागपुर नगर में कुरुवंशी राजा सोमप्रभ भगवान ऋषभदेव के काल में प्रसिद्ध पुरुष थे। उनके जयकुमार नाम का पुत्र था जो अति बलवान और भरत चक्रवर्ती के सेनापति रत्न के रूप में प्रतिष्ठित हुआ था। वह पुण्यवान होते हुए भी परिग्रह परिमाण व्रत को धारण करके अपनी स्त्री सुलोचना में ही संतुष्ट रहता था। एक बार वे दोनों कैलाश पर्वत पर भरत चक्रवर्ती के द्वारा प्रतिष्ठापित जिनालयों में भक्ति करने के लिए गए। उसी समय पर सौधर्म इन्द्र ने स्वर्ग में | जयकुमार के परिग्रहपरिमाणव्रत की प्रशंसा की। उसकी परीक्षा करने के लिए रतिप्रभ नाम का देव आया। उसने दिव्य कन्या का रूप धारण करके अन्य चार वनिताओं के साथ जयकुमार के समीप जाकर के कहा कि सुलोचना के स्वयंवर के समय जिसने तुम्हारे साथ युद्ध किया उस नमि विद्याधर राजा की ये चार रानियाँ हैं जो अत्यंत रूपवान, नव यौवना, सकल विद्याओं में पारंगत और अपने स्वामी से विरक्त चित्त हैं, किंतु आपकी इच्छा करती हैं। इस प्रकार से सुनकर के जयकुमार ने कहा- हे सुंदरी ! परस्त्री मेरी माता के समान है। तब उस दिव्य स्त्री ने जयकुमार के ऊपर बहुत उपसर्ग किया। फिर भी जयकुमार का चित्त विचलित नहीं हुआ। रतिप्रभ देव अपनी माया का उपसंहार करके सभी समाचार जैसा घटित हुआ उसी प्रकार से जयकुमार से कह देता है। जयकुमार की प्रशंसा करके और वस्त्र, आभूषणों के द्वारा उसकी पूजा करके स्वर्ग में चला जाता है। נ נ נ धम्मकहा aa 37 श्रावकजन का धर्म स्वदार संतोष और एकपति का लाभ होना उत्कृष्ट संयम कहा गया है। वह संयम देव और मनुष्यों से पूज्य है ॥ ६ ॥ अ.यो.
SR No.034023
Book TitleDhamma Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherAkalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
Publication Year2016
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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