SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस श्लोक से इनकी ऋद्धि विशेष का और विदेहगमन का स्पष्टीकरण हो रहा है। कथानकों में ऐसा भी आया है कि ये पूज्यपाद मुनि बहुत दिनों तक योगाभ्यास करते रहे। किसी समय एक देव ने विमान में इन्हें बैठाकर अनेक तीर्थों की यात्रा कराई। मार्ग में एक जगह उनकी दृष्टि नष्ट हो गई अत: उन्होंने शान्त्यष्टक रचकर ज्यों की त्यों दृष्टि प्राप्त की। आचार्य वीरसेन (790-825) आचार्य जिनसेन (800-880) जैन सिद्धांत के प्रख्यात ग्रंथ 'षट्खंडागम' तथा 'कसायपाहुड' के टीकाकार आचार्य वीरसेन (सन् ७९२ से ८२३ ई.) इनके गुरु थे। क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी द्वारा सम्पादित 'जैनेन्द्र सिद्धांत कोश' में भी उल्लेख है कि आचार्य जिनसेन , धवला टीका के कत्र्ता श्री वीरसेन स्वामी के शिष्य तथा उत्तरपुराण के कत्र्ता श्री गुणभद्र के गुरु थे और राष्ट्रकूट-नरेश जयतुंग एवं नृपतुंग, अपरनाम अमोघवर्ष (सन् ८१५ से ८७७ ई.) के समकालीन थे। राजा अमोघवर्ष की राजधानी मान्यखेट में उस समय विद्वानों का अच्छा समागम था।[१] 'जैनेन्द्र सिद्धांत कोश' के संदर्भानुसार आचार्य जिनसेन आगर्भ दिगम्बर थे, क्योंकि इन्होंने बचपन में आठ वर्ष की आयु तक लंगोटी पहनी ही नहीं और आठ वर्ष की आयु में ही दिगम्बरी दीक्षा ले ली। इन्होंने अपने गुरु आचार्य वीरसेन की , कर्मसिद्धांत-विषयक गरथ 'षट्खंडागम' की अधूरी 'जयधवला' टीका को, भाषा और विषय की समान्तर प्रतिपादन शैली में पूरी किया था और इनके अधूरे 'महापुराण' या 'आदिपुराण' को (कुल ४७ पर्व) जो 'महाभारत' से भी बड़ा है, इनके शिष्य आचार्य गुणभद्र ने पूरा किया था। गुणसेन द्वारा पूरा किया गया अंश या शेषांश उत्तरपुराण नाम से प्रसिद्ध है। पंचस्तूपसंघ की गर्वावलि के अनुसार वीरसेन के एक और शिष्य थे-विनयसेन। आचार्य जिनसेन (द्वितीय) ने दर्शन के क्षेत्र में जैसी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया है , वैसी ही अपूर्व मनीषा काव्य के क्षेत्र में भी प्रदर्शित की है। बाहुबली गोमतेश्वर (981 AD) जैन समुदाय के लोगो के बीच एक आदरणीय नाम है , वे जैन धर्म के पहले तिर्थकार और ऋषभनाथ के बेटे थे। कहा जाता है की उन्होंने एक साल तक पैरो पर खड़े होकर ही स्थिर
SR No.034017
Book TitleJain Dharm Itihas Par Mugal Kal Prabhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year2017
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size499 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy