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________________ श्वेतांबर और दिगंबर का परिचय : भगवान महावीर ने जैन धर्म की धारा को व्यवस्थित करने का कार्य किया, लेकिन उनके बाद जैन धर्म मूलत: दो संप्रदायों में विभक्त हो गया: श्वेतांबर और दिगंबर | दोनों संप्रदायों में मतभेद केवल दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर है। दिगंबर आचरण पालन में अधिक कठोर हैं जबकि श्वेतांबर कुछ उदार हैं। श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि श्वेत वस्त्र पहनते हैं जबकि दिगंबर मुनि निर्वस्त्र रहकर साधना करते हैं । यह नियम केवल मुनियों पर लागू होता है। दिगंबर संप्रदाय मानता है कि मूल आगम ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं, कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने पर सिद्ध- मुनियों को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती और स्त्री शरीर से कैवल्य ज्ञान संभव नहीं; किंतु श्वेतांबर संप्रदाय ऐसा नहीं मानते हैं। दिगंबरों की तीन शाखा हैं मंदिर मार्गी , मूर्तिपूजक और तेरापंथी, और श्वेतांबरों की मंदिरमार्गी तथा स्थानकवासी दो शाखाएं हैं। दिगंबर संप्रदाय के मुनि वस्त्र नहीं पहनते। "दिग्' माने दिशा। दिशा ही अंबर है, जिसका वह ' दिगंबर '| वेदों में भी इन्हें 'वातरशना' कहा है। जबकि श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि सफेद वस्त्र धारण करते हैं। कोई 300 साल पहले श्वेतांबरों में ही एक शाखा और निकली 'स्थानकवासी'। ये लोग मूर्तियों को नहीं पूजते। जैनियों की तेरहपंथी , बीसपंथी, तारणपंथी, यापनीय आदि कुछ और भी उपशाखाएं हैं। जैन धर्म की सभी शाखाओं में थोड़ा-बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर तथा अहिंसा, संयम और अनेकांतवाद में सबका समान विश्वास है। भगवान महावीर के पश्चात इस परंम्परा में कई मुनि एवं आचार्य भी हुये है , जिनमें से प्रमुख आचार्य पूज्यपाद (474-525) श्री पूज्यपाद स्वामी एक महान आचार्य हुए हैं। श्री जिनसेन , शुभचन्द्र आचार्य आदि ग्रन्थकारों ने अपने-अपने ग्रन्थ में उन्हें बड़े आदर से स्मरण किया है। यथा कवीनां तीर्थकृद्देव: किं तरां तत्र वण्यते। विदुषां वाङ्मलध्वंसि तीर्थ यस्य वचोमयम्।।
SR No.034017
Book TitleJain Dharm Itihas Par Mugal Kal Prabhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year2017
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size499 KB
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