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________________ आचार्य गौतम गणधर (607-515 B.C.) जैन परम्परा के ग्रन्थों में भगवान महावीर के शिष्य परम्परा में ग्यारह गणधरों का वर्णन प्राप्त होता है।समवायांग सूत्र और तिलोय पण्णत्ति आदि जैन ग्रंथों में इनके विशेष विवरण प्राप्त होते हैं। संक्षेप में इन का परिचय इस प्रकार है आचार्य इन्द्रभूति - इनद्रभूति का जन्म ईसा पूर्व 607 ईस्वी मे मगध देश के ब्राह्मण परिवार मे हुआ था। इन्द्रभूति गौतम 500 शिष्यों के साथ भगवान महावीर के समवसरण मे उनके शिष्य बने थे। फिर लगभग 40 वर्षों तक वे भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य बनकर रहे। जैन परम्परा मे गौतम गणधर और महावीर के बीच अनेक सिद्धांतो पर जो चर्चा हुई है वही जैन सिद्धांतो को जानने का प्रमुख आधार है इसलिए यह कहा गया है कि अर्थ के रूप में भगवान महावीर ने जो कुछ भाव व्यक्त किया उसे शब्दों के रूप में गौतम गणधर ने सुरक्षित रखा है गौतम गणधर को भगवान महावीर के निर्वाण - दिवस पर ही केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उन्हो ने भगवान महावीर के संघ का संचालन किया और जैन धर्म का सम्पूर्ण देश मे प्रचार किया। ईस्वी पूर्व 515 में 92 वर्ष की आयु मे राजगृह मे इन्द्रभूति गौतम को निर्वाण प्राप्त हुआ। आचार्य कुन्दकुन्द : गौतम गणधर के बाद आचार्य कुन्दकुन्द को संपूर्ण जैन शास्त्रों का एक मात्र ज्ञाता माना गया है। दिगम्बरों के लिए इनके नाम का शुभ महत्त्व है और भगवान महावीर और गौतम गणधर के बाद पवित्र स्तुति में तीसरा स्थान है मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुंदायो, जैन धर्मोऽस्तु मंगलं॥ आचार्य कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्र के रचियता आचार्य उमास्वामी के गुरु थे। कुन्दकुन्दाचार्य मूलसंघ के प्रधान आचार्य थे। तपश्चरण के प्रभाव से अनेक अलौकिक सिद्धियाँ इन्हें प्राप्त थीं। जैन परंपरा में इनका बड़े आदर से उल्लेख होता है। शास्त्रसभा के आरंभ में मंगल भगवान वीर के साथ-साथ मंगल कुदकुंदाद्यो कहकर इनका स्मरण किया जाता है जिससे जैन शासन में इनक महत्व का पता चलता है।
SR No.034017
Book TitleJain Dharm Itihas Par Mugal Kal Prabhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year2017
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size499 KB
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