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________________ आचार्य रजनीश : ओशो का मूल नाम चन्द्र मोहन जैन था। वे अपने पिता की ग्यारह संतानो में सबसे बड़े थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश में रायसेन जिले के अंतर्गत आने वाले कुचवाडा ग्राम में हुआ था। उनके माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन , जो कि तेरापंथी जैन थे , ने उन्हें अपने ननिहाल में ७ वर्ष की उम्र तक रखा था। ओशो के स्वयं के अनुसार उनके विकास में इसका प्रमुख योगदान रहा क्योंकि उनकी नानी ने उन्हें संपूर्ण स्वतंत्रता , उन्मुक्तता तथा रुढ़िवादी शिक्षाओं से दूर रखा। ओशो रजनीश (११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०) ओशो शब्द लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है , जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना। १९६० के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से एवं १९७० -८० के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और ओशो १९८९ के समय से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे , तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये। वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद ,महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्मं पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। वे काम के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के भी हिमायती थे जिसकी वजह से उन्हें कई भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओ में "सेक्स गुरु" के नाम से भी संबोधित किया गया। ओशो ने सन्यास को एक नई पहचान दी । सन्यांस पहले कभी भी इतना समृद्ध न था जितना आज ओशो के संस्पर्श से हुआ है। । उनकी नजर में सन्यासी वह है जो अपने घर-संसार , पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक , सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। उनकी दृष्टि में वह एक सच्चा संन्यास है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रचलित है। उनका मानना था कि जिसने घर-परिवार छोड़ दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की और वह जीवन से भगोड़ापन है , पलायन है। यह सन्यास आसान था कि आप संसार से भाग खड़े हुए तो संसार की सब समस्याओं से मुक्त हो गए। क्योंकि समस्याओं से कौन मुक्त नहीं होना चाहता ? और जो जो लोग संसार से भागने की अथवा संसार को त्यागने की हिम्मत न जुटा सके, मोह में बंधे रहे, उन्हें त्याग का यह कृत्य बहुत महान लगने लगा, वे ऐसे संन्यासी की पूजा और सेवा करते रहे और सन्यास के नाम पर पर निर्भरता का यह कार्य चलता रहा :
SR No.034017
Book TitleJain Dharm Itihas Par Mugal Kal Prabhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year2017
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size499 KB
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