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________________ 78 शिक्षाप्रद कहानिया अब आप ही बताइए- 'अगर पैसा ही सब कुछ था तो क्यों नहीं वह पैसा उसे उठाकर अस्पताल ले गया, क्यों नहीं श्मशान ले गया। अतः यह नितान्त भ्रम है कि पैसा ही सब कुछ है। ३६. दुःखों को हमने स्वयं पकड़ा है राजस्थान के किसी गाँव में एक परिवार रहता था। घर में रूपए-पैसे की कोई कमी नहीं थी। परिवार के सभी सदस्य आवश्यकतानुसार पढ़े-लिखे भी थे। लेकिन, यह सब होते हुए भी वे छोटी-छोटी बातों को लेकर बड़े दुःखी रहते थे। जिसके कारण परिवार में हमेशा तनाव बना रहता था। परिवार के बड़े होने के नाते एक दिन पति-पत्नी ने सोचा क्यों न कोई ऐसा उपाय किया जाए? जिससे घर में सुख-शान्ति बनी रहे। यह सोचकर वे दोनों अपने एक परिचित के पास गए और उनको सारी बात बताई। तब परिचित ने उन्हें बतलाया कि जंगल में एक साधु रहते हैं और वे चुटकियों में सभी समस्याओं का समाधान कर देते हैं। अतः आपको उनके पास जाना चाहिए। अन्धा क्या चाहे, दो आँखें और पति-पत्नी चल दिए जंगल की ओर और उदास व दु:खी मन से पहुँच गए साधु के पास। और विनम्रतापूर्वक दोनों ने साधु से निवेदन किया- 'हे परमदयालु! आपके पास दुनिया के कोने-कोने से दु:खी लोग आते हैं। आप उन सबकी झोली खुशियों से भर देते हैं, किसी को निराश नहीं लौटाते। हम भी बड़े दु:खी हैं। अतः आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि आप हमारे भी दु:ख दूर करें। यह सुनकर साधु ने क्षण भर उनकी ओर देखा और मन ही मन कुछ सोचकर अपनी पर्णकुटी से बाहर निकल आये। कुटिया के बाहर एक पेड़ का सुखा लूंठ खड़ा था। उन्होंने उपने दोनों हाथों से कसकर उस ठूठ को पकड़ लिया और लगे चिल्लाने 'बचाओं बचाओं' 'छुड़वाओं-छुड़वाओं कोई मुझे इस ढूँठ से छुड़वाओं। साधु का शोर सुनकर आस-पास के सभी लोग एकत्रित हो गए और पूछने लगे- 'क्या
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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