SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षाप्रद कहानिया 75 था। संयोगवश एक दिन सुबह-सुबह जब वह अखबार बाँट रहा था तो उस जोरों की भूख लग आई। भूख के कारण वह इतना व्याकुल हो गया कि घर वापस जाने तक की हिम्मत उसमें नहीं रही। अतः उसने सोचा कि यहीं किसी घर से कुछ माँग कर खा लिया जाए। हिम्मत करके उसने एक घर का दरवाजा खटखटा ही दिया। दरवाजा एक लड़की ने खोला, लड़की को देखते ही वह शरमा गया और संकोच करते हुए उसने लड़की से केवल एक गिलास पानी माँगा। लड़की समझदार और अनुभवी थी। वह लड़के को देखते ही समझ गई कि वह बहुत भूखा है। सुबह-सुबह घर में भोजन तो बना नहीं था और इतनी जल्दी बन भी नहीं सकता था। अतः उसे रसोई में और तो कुछ मिला नहीं हाँ दूध रखा था। उसने तुरन्त एक गिलास दूध गर्म किया उसमें चीनी डाली और लड़के को दे दिया। लड़के ने दूध लेकर बड़ी ही प्रसन्नता से पी लिया। जिससे उसे बड़ी शान्ति मिली। दूध पीने के बाद कृतज्ञ भाव से लड़का बोला- 'आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूँ मैं नहीं जानता। आपने ऐसी विकट स्थिति में मेरी सहायता की है कि मैं आपको बता नहीं सकता। और न ही मैं इसका कोई मूल्य चुका सकता हूँ। क्योंकि जो काम आपने किया है, उसका मूल्य चुकाया ही नहीं जा सकता। फिर भी, आप आदेश दीजिए मैं आपके लिए क्या कर सकता यह सुनकर लड़की बोली- 'मैंने कुछ नहीं किया। मैंने तो केवल अपने मानवीय धर्म का पालन किया है, जोकि हम सबको करना चाहिए। और रही मूल्य की बात तो मेरे माता-पिता ने मुझे यही सिखाया है कि किसी भी प्राणी की मदद के लिए मूल्य नहीं लेना चाहिए। मैं आपसे कुछ नहीं ले सकती। अतः अब आप सब बात छोड़िए और खुशी-खुशी अपना काम कीजिए और जीवन में आगे बढ़िए। यह सुनकर लड़के ने लड़की को पुनः धन्यवाद कहा और मन ही मन सोचने लगा कि अभी संसार में मानवता बची है। न केवल उसने यह सोचा ही
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy