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________________ 58 शिक्षाप्रद कहानिया कई विकारों के साथ-साथ कामवासना जागृत होने लगी। एक दिन जब राजकुमारी सज-सँवर कर विद्याध्ययन के लिए उसके सामने आई तो वह उस पर मुग्ध हो गए और उसने उसी समय जाकर राजा से कहा, 'महाराज! मैंने आपके पुत्र तथा पुत्री को अनमोल ज्ञानगंगा दी है, इसके फलस्वरूप मेरी इच्छा है कि आप मेरा विवाह राजकुमारी के साथ कर दें।' यह अशोभनीय और विचित्र डिमाण्ड (माँग) सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर भी, वे स्वयं को नियन्त्रित करते हुए बोले- 'हे ब्राह्मण देवता! सर्वप्रथम तो आप जैसे ज्ञानी पुरुष के मुख से ऐसी बात शोभा नहीं देती। दूसरी बात मैंने अपनी पुत्री के विवाह के लिए राजा उग्रसेन को वचन दे दिया है, अतः मैं आपकी इच्छा पूरी करने में असमर्थ हूँ।' इतना सुनते ही ब्राह्मण क्रोधित होते हुए बोला- 'आप अगर मेरी इच्छापूर्ति नहीं करेंगे तो मैं आपको श्राप (शाप) दे दूंगा।' राजा थोड़ा-सा भी विचलित नहीं हुआ और बोला- जिस ब्राह्मण में धर्म-अधर्म, उचित-अनुचित का विवेक न हो भला उसके शाप से किसी का अनिष्ट कैसे हो सकता है?' ब्राह्मण गुस्से से आग-बबूला होकर राजमहल से निकल गया और गुरु गोरखनाथ के पास जाकर उनकी तन-मन-धन से सेवा करने लगा। एक दिन उसकी सेवा से प्रसन्न होकर गुरु जी ने उसकी इच्छा पूछी तो उसने सारी बात बताई। यह सुनकर गुरु गोरखनाथ बोले- देखो भाई, ब्राह्मणों को इन सब भोग-विलासों से क्या लेना-देना? ब्राह्मण कुल में जन्म लिया है, ब्रह्म की उपासना करने के लिए। अतः तुम्हें इस आमोद-प्रमोद से दूर ही रहना चाहिए और ये इन्द्रिय सुख तो क्षणिक होते हैं, इनसे कभी किसी की तृप्ति नहीं होती। तुम तो शाश्वत सुख प्राप्त करो जिससे सदा-सदा के लिए तुम्हारा कल्याण हो। अतः मैं तो तुम्हें यही शिक्षा दूंगा
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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