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________________ शिक्षाप्रद कहानियां लेकिन क्या करूँ? पत्नी के आग्रह और जिद ने आने को विवश कर दिया इसलिए मैं चला आया । यह सुनकर राजा बोला- आप बेझिझक होकर बोलिए हमारे राज्य में सभी समान हैं, और सभी को अपनी बात कहने का समान हक है। अतः संकोच न करें। 48 यह सुनकर वह व्यक्ति बोला- राजन् ! आज प्रात:काल जब मैं यात्रा के लिए निकल रहा था तो मेरी पत्नी ने मुझे पोटली में बाँधकर चार रोटियाँ दे दीं और कहने लगी मार्ग में जब भी भूख लगे खा लेना। और वो पोटली लेकर मैं घर से निकल पड़ा आधा मार्ग बीत जाने के बाद मुझे जोरों की भूख लगी । और मैं एक वट वृक्ष की छाया में बैठकर पोटली खोलने लगा तभी एक कुतिया और उसके दो बच्चे मेरे पास आकर बैठ गए। और मेरी तरफ टुकर-टुकर देखने लगे। इससे स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि वे सब भूखे हैं। यह सब देखकर मुझे उन पर दया आ गई और मैंने एक रोटी के तीन टुकड़े किए और उनके सामने डाल दिये। वे उन्हें तुरंत खा गए । और खाने के बाद वे फिर दुम हिलाते हुए मेरी ओर देखने लगे। शायद कह रहें हो कि हमें अब भी भूख लगी है, हमें और रोटी चाहिए। यह सब देखकर मैने बाकी भी तीन रोटियों के टुकड़े किए और उनके आगे डाल दिए और उन्होंने खा लिए । हे राजन्! वर्तमान में ही घटित इस घटना से मैं ऐसा प्रेरित और हर्षित हुआ कि मेरे पास ऐसे शब्द नहीं है कि मैं उसको प्रकट कर सकूँ। मुझे जो सुखद अनुभुति हुई वो मैं कैसे बता सकता हूँ। और इस घटना को मैं आजीवन याद रखूगाँ। राजा भोज इस घटना को सुनकर अत्यन्त प्रफुल्लित हो गए और कहने लगे- यही है असली विद्वता । महर्षि व्यास ने कहा भी है कि अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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