SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 45 शिक्षाप्रद कहानिया पर जाला बनाने में तल्लीन है। लेकिन, वह बारम्बार कोशिश करने के उपरान्त भी सफल नहीं हो पा रही थी। राजा मन ही मन सोचने लगा- यह बेचारी व्यर्थ ही प्रयत्न कर रही है। बिना आधार के भला जाला कैसे बन सकता है? किन्तु कुछ ही क्षणों के उपरान्त राजा ने आश्चर्यचकित होते हुए देखा कि- मकड़ी सफल हो गई है। मकड़ी का एक छोटा-सा तन्तु (धागा) गुफा के मुंह पर अटक ही गया है। और बस फिर क्या था? देखते ही देखते पल भर में ही मकड़ी ने गुफा के पूरे मुंह पर जाला बुन दिया। उसी समय शत्रु राजा के सैनिक वहाँ आ पहुँचे। लेकिन गुफा के मुंह पर जाला देखकर उन्होंने मन ही मन अनुमान लगा लिया कि यहाँ कोई नहीं हो सकता। और वे लौट गए। सिर पर मँडरा रही मौत तो वापिस चली गयी लेकिन राजा के मन में एक अत्यन्त गम्भीर विचार ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगा- यह छोटी-सी मकड़ी बार-बार गिरकर, असफल होकर भी निराश-हताश व परास्त नहीं हुई और मैं मनुष्य होकर भी इतना निराश-हताश हो गया हूँ। अगर मैं भी इस मकड़ी की तरह और उत्साह धारण कर लूँ तो अवश्य ही एक दिन शत्रु को पराजित करके पुनः अपने राज्य की स्थापना कर सकता हूँ। और उसने उसी समय दृढ़ संकल्प कर लिया कि एक दिन वह अवश्य ही अपने उद्देश्य में सफल होकर रहेगा। इस मकड़ी ने मेरे संकल्प को मजबूत कर दिया है। ऐसा सोचते हुए वह गुफा से बाहर निकल गया। और अपने अन्दर एक नई इच्छाशक्ति, उत्साह और संकल्प का अनुभव करने लगा। और इसी दृढ़संकल्प के साथ उसने पुनः अपने सभी साथियों को एकत्रित किया और अन्त में शत्रु पर विजय प्राप्त कर पुनः अपने राज्य की स्थापना की। २३. अपेक्षा समझना जरूरी एक आश्रम में गुरु जी अपने शिष्यों को विद्या का अध्ययन कराया करते थे। एक दिन उन्होंन शिष्यों को समझाया कि सभी जीवों
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy