SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 19 शिक्षाप्रद कहानिया अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, मोह इन सबको त्यागकर अपने आत्मस्वरूप का विचार करो कि मैं कौन हूँ। जो आत्मज्ञान से रहित अज्ञानी हैं, वे ही घोर नरक में पकाए जायेंगे। ११. जो बोता है, वही काटता है बात त्रेता युग की है। एक बार नारद मुनि जंगल में विचरण कर रहे थे। उन्होंने मूल्यवान् गहने और वस्त्रादि धारण कर रखे थे। उस जंगल में रत्नाकर नाम का एक प्रसिद्ध डाकू रहता था। उसका काम था वहाँ से गुजरने वाले यात्रियों का लूटना। अतः वह उस मार्ग में छिपकर बैठा था। जैसे ही नारद जी उसके सामने से निकले उसने आदेशात्मक भाषा में कहा- ठहर जाओ, तुम्हारे पास जो भी कीमती वस्त्र-आभूषण आदि हैं, वे सब मेरे हवाले कर दो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो अपनी जान से भी हाथ धो बैठोगे। यह सुनकर नारद जी रुक गए और बोले- ये सब वस्तुएं तो मैं तुमको सहर्ष दे दूंगा, मुझे इन क्षणभंगुर वस्तओं के लिए अपने प्राण गँवाने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन, इससे पहले मैं तुमसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि तुम इन सबको लेकर क्या करोगे? यह सुनकर रत्नाकर हँसने लगा और बोला- तुम बड़े मूर्ख हो। करूँगा क्या? मेरे घर में भरा-पूरा परिवार है। माँ-बाप हैं, भाई-बहन हैं, पत्नी है, बच्चे हैं। इन सबको ऐशोआराम मिलेगा। इन वस्तुओं को बेचकर बहुत सारा धन मिलेगा उससे मैं उन सबके लिए इष्ट वस्तुओं को खरीदूंगा और उन्हें दे दूँगा। जिससे वे सब सुखपूर्वक जीवन-यापन करेंगे। और मैं क्या करूँगा यही मेरा कर्तव्य है। ___ यह सुनकर नारद जी बोले- ये सब तो तुम मेहनत करके धन कमा कर भी कर सकते हो, इसके लिए किसी को लूटने-खसूटने की क्या जरुरत है? ये काम जो तुम कर रहे हो यह तो बड़ा ही गलत काम है। यह सुनकर रत्नाकर बोला- वो सब मेहनत-वेहनत मुझसे नहीं
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy