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________________ 212 शिक्षाप्रद कहानियां और जाकर बोले- 'नमस्कार सुअर महाराज ! जरा एक मिनट के लिए मेरी बात सुनेंगे।' सुअर ने कहा- नमस्कार ! थोड़ा ठहरो मुझे बड़ा मजा आ रहा है' और वह कीचड़ में इधर-उधर पलटी मारने लगा। भगवान् शिव खड़े-खड़े बड़े व्यथित हो रहे थे। काफी देर हो गई तो उन्होंने फिर कहा- 'भाईसाहब ! जरा सुनोगे मेरी बात । ' सुअर अपना मुँह ऊपर उठाते हुए बोला- 'कितना मजा आ रहा है। मुझे यह आप क्या जानो? न जाने आप कहाँ से आ गए मेरा मजा किरकिरा करने। अच्छा चलो बोलो, क्या कहना चाहते हो?' भगवान् बोले- ‘भैया, हम विमान से स्वर्गलोक जा रहे थे। मेरी श्रीमती जी चाहती हैं कि आप भी हमारे साथ चलो। वहाँ पर एक देव के विवाह का समारोह है । तुम्हें वहाँ बड़ा मजा आएगा । ' यह सुनकर सुअर बोला- 'अच्छा, यह बात है। आप थोड़ा ठहरो तब तक मैं सोच भी लेता हूँ और पाँच-सात उलटा - पलटी भी लगा लेता हूँ।' और वह लग गया अपने काम में। जब उसे काफी देर हो गयी तो भगवान् ने पार्वती के पास जाकर कहा- 'देखिए, मैं आपको पहले ही कह रहा था कि वह हमारे साथ नहीं चलेगा। उसे यहीं मजा आ रहा है और आप हैं कि मानती ही नहीं। अब चलिए बहुत समय खराब हो गया।' पार्वती बोलीं- 'अरे! नहीं-नहीं आप एक बार और प्रयास कीजिए । वह अवश्य ही चलेगा। स्वर्ग जैसी जगह जाने के लिए तो सभी प्राणी आतुर रहते हैं। मनुष्य तो स्वर्ग के चक्कर में न जाने क्या-क्या प्रपञ्च करते हैं दान-पुण्यादि। इसे तो बिना कुछ किए ही स्वर्ग जाना नसीब हो रहा है।' शिव भगवान् को फिर जाना पड़ा क्या करते बेचारे? मजबूर जो थे। वहाँ जाकर वे बोले- महाराज ! आपकी पाँच-सात उलटा - पलटी हो गईं हो तो अब चलें। हमें देर हो रही है। यह सुनकर सुअर महाराज बोले- बस, पाँच मिनट और अभी चलता हूँ। इसी प्रकार भगवान् ने उससे कई बार पूछा। और वह यही कहता रहा बस पाँच मिनट और बस दो मिनट और। अंत में शिव भगवान् बोले- ‘अच्छा, भाई सुअर महाराज ये जोड़े दो हाथ हम चले।'
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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