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________________ 208 शिक्षाप्रद कहानिया आपको यह सब पहले से ही पता था तो क्यों जीवन भर हिंसा करते रहे? क्यों लोगो को सताते रहे? अतः मूर्ख मैं नहीं आप हैं।' यह सुनकर राजा की आँखें खुल गयी और उन्होंने उसके पैर पकड़ लिए लेकिन अब क्या फायदा था। मित्रों! यह कहानी बस एक उस राजा की नहीं है अपितु हम सब राजाओं की भी कहानी इससे मिलती-जुलती है। हम भी जीवन भर उचित-अनुचित का विचार करे बिना ही लगे रहते हैं अपना भंडार भरने। अतः हम सबको समय रहते इस पर विचार करना चाहिए और उक्त किसी ऐसे मूर्ख की तलाश करनी चाहिए जो समय रहते हमारी आँखें खोल दे। व्यक्ति की इच्छाएं अंतहीन होती हैं लेकिन, यह जीवन जो हमें इस मनुष्य पर्याय में मिला है यह अंतसहित होता है। कहा भी जाता है कि इच्छति शती सहस्रं, सहस्री लक्षमीहते। लक्षाधिपस्तथा राज्यं, राज्यस्थः स्वर्गमीहते॥ जीर्यन्ते जीर्यतः केशाः, दन्ता जीर्यन्ति जीर्यतः। जीर्येत् चक्षुषी श्रोत्रे, तृष्णैका तरुणायते॥ अर्थात् जिसके पास सौ है, वह हजार की चाह करता है। जिसके पास हजार है, वह लाख की चाह करता है। जिसके पास लाख है, वह करोड़ की राज्य की चाह करता है और जिसके पास राज्य है वह स्वर्ग की चाह करता है। बूढ़ा होने पर बाल पक जाते हैं, दाँत भी गिर जाते हैं, कान और आँख बाधित हो जाते हैं, परंतु उसकी तृष्णा सदा तरुण रहती है, कभी नष्ट नहीं होती। ९८. नारी का सम्मान महाभारत काल की घटना है। एक बार भीम को ज्ञात हुआ कि धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रौपदी के पैर दबाए हैं। यह जानकर उसे बहुत ग्लानि हुई वह मन ही मन सोचने लगा कि अब तो उल्टी गंगा बहने लगी। जहाँ पत्नी को पति की सेवा करनी चाहिए, वहाँ पति पत्नी की सेवा करने लगा है। और वह भी धर्मराज युधिष्ठिर ऐसा कर रहे हैं बड़े
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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