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________________ 198 शिक्षाप्रद कहानिया विद्यानन्द ने प्यार से मुस्कराते हुए, अपने मित्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- 'आज ही जाना होगा ऐसा कुछ निश्चित नहीं है किसे कब जाना है यह सर्वज्ञ के अतिरिक्त कोई नहीं जान सकता। मैंने तो तुम्हारी समस्या के निदान हेतु एक प्रयोग मात्र किया था।' 'तुम्हें एक आशंका हो गयी थी कि सातवें दिन मृत्यु आ सकती है। मात्र इतने से ही तुम्हारे मन के आवेग शांत हो गए। वासनाएं मंद पड़ गयी और जीवन के प्रति तुम्हारा नजरिया ही बदल गया।' 'हमने जब से साधना प्रारंभ की है तब से हर क्षण मृत्यु की संभावना हमारी दृष्टि में उपस्थित रहती है। लगता है जो साँस बीती जा रही है वह लौट कर आयेगी या नहीं, कोई गारंटी नहीं मृत्यु जीवन का अटल सत्य और परिणाम है। यदि हम सब इस बात को ध्यान में रखें तो हमारी जीवन-यात्रा शांति एवं सद्भावना पूर्वक पूर्ण हो सकती है। और यही हमारे संतोष और आनन्द का रहस्य है।' और हाँ एक बात और कहनी है मित्र! 'मैंने तुमसे जो कहा था वह बिल्कुल असत्य भी नहीं है सोमवार से लेकर रविवार तक दिन तो कुल सात ही होते हैं। सभी के जीवन का अंत इन्हीं में से किसी एक दिन होता है। किसी के लिए आठवाँ कोई दिन है ही नहीं। इसलिए जाते-जाते यह और कहना है कि किसके लिए कौन-सा दिन अंतिम दिन होगा यह सर्वज्ञ के अतिरिक्त कोई नहीं जानता। अतः अपने कर्तव्य का पालन करो और हर दिन जीवन का अंतिम दिन मानकर सावधानी और विवेकपूर्ण जीना सीखो। वासनाओं का मकड़जाल खुद ब खुद टूटता चला जाएगा। पल-पल हर्ष और आनन्द से भर जाएगा। ९३. विचित्र प्रयोग बहुत समय पहले की बात हैं कुछ मित्र गंगा किनारे पिकनिक मनाते हुए मौज-मस्ती कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि सामने एक वृक्ष के नीचे एक संन्यासी उपलों की आँच पर रोटियाँ सेंक रहा था। उसने कुल तीन रोटियाँ बनायीं शायद उसके पास आटा इतना ही था। लेकिन, यह क्या? उसने देखते ही देखते तीनों रोटियों के छोटे-छोटे टुकड़े किए
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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