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________________ 193 शिक्षाप्रद कहानिया उसने सोच लिया कि उसका परलोक गमन निश्चित है उस समय उसने अपने पुत्र श्रुतायुध को अपने पास बुलाया और कहने लगे- 'बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो और तुम जानते ही हो कि मैं एक सैनिक हूँ, मैंने अपना संपूर्ण जीवन शस्त्र विद्या सीखने तथा राष्ट्र की रक्षा करने के लिए युद्ध करते हुए बिता दिया है। अतः धन-संपत्ति के नाम पर तो कुछ विशेष नहीं है हाँ मेरे पास एक विशिष्ट गदा है जिसे मैंने वर्षों की तपस्या के बाद प्राप्त किया है। अतः मैं संपत्ति के रूप में वह गदा तुम्हें दे सकता हूँ। और हाँ, देखा जाए तो ये शस्त्र ही हमारी संपत्ति है, क्योंकि हमारा परिवार तो पीढ़ी दर पीढ़ी राष्ट्र की सुरक्षा करता आया है जो कि भविष्य में तुम्हें भी करनी है। इस गदा में विशिष्टता यह है कि इसका निशाना अचूक है और इसका प्रहार कभी व्यर्थ नहीं जाता। लेकिन, यह गदा अगर किसी निर्बल, निहत्थे या निर्दोष मनुष्य पर चलायी जाए तो यह उलटकर चलाने वाले को ही मार डालती है। अतः इसको चलाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना।' इतना कहकर वरुण परलोक गमन कर गया। अब श्रुतायुध में कुछ अहम्भाव उत्पन्न हो गया और वह स्वयं को सबसे बड़ा बलवान् और अजेय वीर योद्धा समझने लगा। समझे भी क्यों न? ऐसा अद्भूत हथियार जो उसके पास है। उन्हीं दिनों कौरवों और पांडवों में युद्ध ठन गया और श्रुतायुध ने कौरवों के पक्ष में युद्ध करना स्वीकार किया। युद्ध प्रारंभ होने के कई दिन बाद जब एक दिन अर्जुन और जयद्रथ के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। अर्जुन जयद्रथ को पराजित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा था तो अचानक कौरवों की सेना में हाहाकर मच गया। श्रुतायुध ने भी यह हाहाकार सुना। उसे तो पिता द्वारा प्रदान की गयी गदा पर घमंड था। अत: वह भिड़ गया अर्जुन से और मारने दौड़ा अर्जुन को। लेकिन वह प्रहार करता उससे पहले ही अर्जुन ने उस पर गाण्डीव से तीरों की बौछार कर दी और वह घायल होकर नीचे गिर गया। यह देखकर प्रसन्न होते हुए श्रीकृष्ण ने अपना
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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