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________________ 187 शिक्षाप्रद कहानिया संत दादू रज्जब की गुरुनिष्ठा देखकर अभिभूत हो गए। उन्होंने उसे उठाया और गले लगाते हुए आत्मीय भाव से बोले- 'धन्य है रज्जब तुम्हारी गुरुनिष्ठा। इसीलिए कबीरदास को लिखना पड़ा सिख तो ऐसा चाहिए जो गुरु को सब कुछ दे। लेकिन, गुरु भी ऐसा चाहिए जो सिख से कछु न ले॥ ८९. मन ही राक्षस है उत्तर भारत के किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसके पास खेती की बहुत सारी जमीन थी। परिवार में केवल उसकी पत्नी और बेटी थी। बेटी अभी उम्र में बहुत छोटी थी और पत्नी घर के काम में व्यस्त रहती थी। अतः खेती का सारा काम किसान को ही करना पड़ता था। जिसके कारण वह बहुत व्यस्त रहता था। और काम की अधिकता के कारण कुछ परेशान भी रहता था। उसकी एक खासियत (अच्छाई) थी कि वह प्रभात और संध्या में भगवान् की पूजा अर्चना अवश्य करता था। यह उसका नित्य का नियम था। चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन, वह अपने इस नियम का पालन अवश्य करता था। एक दिन भगवान् उसकी भक्ति से इतने अधिक प्रसन्न हो गए कि वे उसके सामने प्रकट हो गए और बोले- 'मैं तुम्हारी दृढ़ श्रद्धा भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ, बोलो, तुम्हें क्या चाहिए।' यह सब देखकर वह किसान आश्र्चयचकित होते हुए बोला कि- 'हे भगवन् मेरे पास आपका दिया हुआ सब कुछ है, किसी चीज की कमी नहीं है। कमी है तो केवल एक कुशल कार्यकर्ता की। मुझसे अकेले सब काम नहीं होता, पत्नी घर के कामों में व्यस्त रहती है, पुत्री अभी छोटी है। और बड़ी भी हो जाएगी तो वह तो ठहरी पराया धन उसे भी तो एक न एक दिन सामाजिक परंपरा का निर्वहण करते हुए विवाह के बंधन में बँधना ही है। अतः संभव हो तो मुझे एक ऐसा कुशल कार्यकर्ता दे दीजिए जो, मेरे काम में मेरा हाथ बँटा सके।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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