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________________ 181 शिक्षाप्रद कहानिया इसी संदर्भ में मैने एक कहानी सुनी थी। यहाँ मैं उसे ही लिखने का प्रयत्न कर रहा हूँ। किसी गाँव मे एक गरीब आदमी रहता था। एक दिन उसे जोरों की भूख लगी तो वह गाँव में घरों की ओर चल दिया। एक घर के दरवाजे पर पहुँचकर उसने आवाज लगाई- 'कोई भूखे का रोटी दे दो।' उसकी करुणामयी आवाज सुनकर अन्दर से एक आदमी निकला और बोला- देख भाई! मैं एक कवि हूँ, कविता गढ़ना और काव्य पाठ सुनाना ही मेरा काम है। अतः मै तुम्हें भी एक कविता सुना देता हूँ। यह सुनकर वह बोला- 'हे काव्य शिरोमणि! कविता भी तभी अच्छी लगती है जब पेट में कुछ हो।' कहा भी गया है कि- भूखे पेट भजन नहीं होय। अतः आप तो पहले मुझे रूखी-सूखी ही सही लेकिन दो रोटी दे दो। लेकिन, कवि कहाँ सुनने वाला था वह तो लगा अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने, करने लगा काव्यपाठ। वह आदमी अपने पेट को मलता हुआ आगे बढ़ गया। उसे जाते देखकर कवि महोदय मन ही मन बड़बड़ाए- देखो तो सही कितना बुरा जमाना आ गया है! भिखारी में भी इतनी अकड़ है! मैं दूसरे को हजार रूपये लेकर कविता सुनाता हूँ, इसे फ्री-फंड में सुना रहा था। तो भी इसने नहीं सुनी। मुझे लगता है यह कोई मूर्ख है। वर्ना, हजारों रूपये की कविता छोड़कर दो आने की रोटी माँगता। तत्पश्चात् वह गरीब आदमी दूसरे दरवाजे पर पहुँचा। यह एक वैद्य जी का घर था। उसकी फरियाद सुनकर वैद्य जी बोले- देखो भाई साहब, मैं तो वैद्य हूँ मेरा काम है दवाई देना। लो, एक काम करो, एक खुराक दवाई तुम भी पी लो। यह सुनकर वह आदमी बोला- 'वैद्य जी! दवाई भी तभी अच्छी लगती है जब शरीर में कोई बीमारी हो या अधिक खाने से पेट में अजीर्ण हुआ हो, लेकिन, मुझे तो भूख का दर्द है। आपकी खुराक से मेरी भूख शांत नहीं होगी। हो सके तो आप तो मुझे रूखी-सूखी दो रोटी दे दो। वैद्य जी बोले अरे पगले! एक रोगी को देखने मात्र की फीस 500 रूपये ले लेता हूँ। हजारों की दवाई अलग से देता
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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