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________________ 172 शिक्षाप्रद कहानिया देखूगा-सोचूँगा। हममें से भी अधिकांश लोगों की यही स्थिति है। हम लोग अपने जीवन में शांति को कितना महत्त्व देते हैं?... शांति हमें सब प्रकार की आकांक्षाओं के अंत में ग्राह्य होती है तथा वास्तविकता यह है कि जब तक इच्छाएँ और आकांक्षाएँ होंगी, तब तक शांति उपलब्ध नहीं होगी। ८३. सुख कहाँ और कैसे संसार में दुःख है या यह कहें कि संसार दु:खमय है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। इसी दुःख से छुटकारा पाने के लिए प्रत्येक प्राणी लालायित है और सुख के लिए रात-दिन प्रयत्न करते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है। जिन्हें पेट भरने के लिए न मुट्ठी-भर अन्न मिलता है। और न तन ढकने के लिए वस्त्र, उनकी बात तो जाने दीजिए। जो सम्पत्तिशाली हैं, उन्हें भी हम किसी न किसी दुःख से पीड़ित देखते हैं। निर्धन धन के लिए दु:खी है और धनवानों को धन की तृष्णा चैन नहीं लेने देती। नि:संतान संतान के लिए रोते हैं तो संतान वाले संतान के भरण-पोषण के लिए चिंतित हैं। किसी का पुत्र मर जाता है तो किसी की पुत्री विधवा हो जाती है। कोई पत्नी के बिना दुखी है तो कोई कुल्टा पत्नी के कारण दु:खी है। निष्कर्ष यह है कि प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी दुःख से दु:खी है और अपनी-अपनी समझ या सामर्थ्य के अनुसार उसे दूर करने की चेष्टा करता है, किंतु फिर भी दुःखों से छुटकारा नहीं होता। सुख की इच्छा को पूरा करने के लिए पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है किंतु किसी की इच्छा पूरी नहीं होती। सुख के साधन शास्त्रों में तीन बताये गये हैं- धर्म, अर्थ और काम। इनमें भी धर्म ही सुख का मुख्य साधन है और बाकी के दोनों गौण हैं, क्योंकि शुभाचरण रूप धर्म के बिना प्रथम तो अर्थ और काम की प्राप्ति ही असंभव है। शुभाचरण के बिना अगर काम और अर्थ की प्राप्ति मान भी लीया जाए तो अधर्मपूर्ण साधनों से उपार्जन किया हुआ अर्थ और काम कभी सुख का कारण हो नहीं सकता, बल्कि दुःख का ही कारण
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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