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________________ 155 शिक्षाप्रद कहानिया प्रयोग किया जाए और उसने तुरंत अपने मन में एक युक्ति की योजना बना ली। अब भोलू स्वयं ही जोर-जोर से हँसते हुए राजा चिंपू की ओर बढ़ने लगा। चिंपू को यह देखकर बड़ा आश्र्चय हुआ जैसे ही भोलू चिंपू के पास पहुँचा उसने पूछा कि भाई क्या बात है? तुम्हें तो भयभीत होना चाहिए तुम हो कि हँसते हुए मेरे पास चले आ रहे हो। तब भोलू कहने लगा- क्या बताऊँ महाराज बात ही कुछ ऐसी है। आज सुबह ब्रह्ममूहुर्त के समय प्रतिज्ञा की थी कि आज मैं जब तक दस शेरों को नहीं मार दूंगा तब तक भोजन नहीं करूँगा। और हुआ यह कि नौ शेर तो मैंने दिन निकलते ही एक घण्टे के अन्दर मार गिराए लेकिन दसवां शेर खोजते-खोजते दोपहर हो गयी। तथा भूख के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा है अब तुम मिले हो मेरी प्रतिज्ञा पूरी होने का समय आ गया है। इसलिए मैं हँसते हुए चला आ रहा हूँ। अब चिंपू शेर मन ही मन भयभीत हो गया कि जब इसने नौ शेरों को मार गिराया है वह भी एक घंटे में तो मुझे मारने में यह कितनी देर लगाएगा। और शेर ने न इधर देखा और न उधर देखा वह तुरंत दुम दबाकर भाग गया। इसीलिए कहा भी जाता है कि न देवा यष्टिमादाय रक्षन्ति पशुपालवत्। यं हि रक्षितुमिच्छन्ति धिया संयोजयन्ति तम्॥ अर्थात् देवता चरवाहे की तरह लाठी लेकर रक्षा नहीं करते हैं। जिसकी वे रक्षा करना चाहते हैं उसे वे सुबुद्धि से संयुक्त कर देते हैं। ६८. मुक्ति का उपाय वाराणसी में एक महात्माजी रहते थे। उनके पास एक तोता रहता था। वह तोता सारे दिन महात्माजी की बातें सुनता रहता। धीरे-धीरे सत्संगति के प्रभाव से वह तोता बहुत सारी अच्छी बातें बोलना भी सीख गया। आने-जाने वालों का मधुर भाषा में स्वागत, अभिवादन भी करने लगा तथा तत्त्वज्ञान की भी बहुत कुछ बातें बोलने लगा जैसे- नमस्कार!
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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