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________________ 153 शिक्षाप्रद कहानिया की थी, क्यों ने हम उनकी शरण में चलें। पत्नी की बात व्यापारी की समझ में आ गई और वे उस राज्य की ओर चल पड़े। जैसे ही वे महल के प्रवेश द्वार पर पहुँचे तो पहरेदार ने उन्हें अन्दर जाने से रोका तथा उनके हालात देखकर कहने लगा- न जाने कहाँ से भिखमंगे चले आते हैं। लेकिन, उसी समय वहाँ से एक सैनिक निकला उसने व्यापारी को पहचान लिया तथा पहरेदार से बोला इन्हें यहीं ठहराओ, मैं अभी दो मिनट में बादशाह के पास जाकर आता हूँ। __ सैनिक ने अंदर जाकर बादशाह को सारी बात बतलाई। वह सुनते ही तुरन्त दौड़ पड़ा तथा प्रवेशद्वार पर जाकर उन्हें अंदर लिवा लाया। बादशाह ने सारे हालात जानकर सैनिको को आदेश दिया कि इन बच्चों को और इनकी पत्नी को राजमहल में ले जाओ और इनके रहन-सहन, खान-पान आदि का शाही प्रबंध करो। उन सबके चले जाने पर बादशाह ने दूसरे सैनिकों को आदेश दिया कि व्यापारी को किसी अलग कमरे में रखो और इनके खाने-पीने का सब प्रबंध वहीं कर दो। समय व्यतीत होने लगा। बादशाह प्रतिदिन सैनिकों से व्यापारी का हाल-चाल पूछते रहते। एक दिन बादशाह ने एक सैनिक को एक रूपया देकर कहा कि बाजार जाओ और इस एक रूपये का जूट (जिससे रस्सी बनती है) व्यापारी को लाकर दो और उससे कहो कि वह उसे बाँटकर रस्सी तैयार करे और शाम को तुम उस रस्सी को बाजार में बेचकर आओ और मुझे बताओ कि वह रस्सी कितने रूपयों में बिकी। सैनिक ने वैसा ही किया। शाम को वह रस्सी बेचने बाजार में गया तो वह रस्सी चार आने (25 पैसे) की बिकी। सैनिक ने सारा हाल बादशाह को सुनाया। बादशाह ने सैनिक को फिर वैसा ही करने को कहा। अगले दिन व्यापारी द्वारा तैयार की गयी रस्सी आठ आने (50 पैसे) की बिकी। इसी प्रकार क्रम चलता रहा और एक दिन ऐसा आया कि वह रस्सी पाँच रूपये में बिकी। अगले दिन सात रूपये की इसी प्रकार धीरे-धीरे व्यापारी द्वारा तैयार की गयी रस्सी और भी अधिक रूपयों में बिकने लगी। __ अब बादशाह ने सैनिक को आदेश दिया कि व्यापारी को मेरे पास बुलाकर लाओ और उसे अच्छे-अच्छे वस्त्र आभूषण पहनाओ।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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