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________________ 150 शिक्षाप्रद कहानिया महात्माजी बोले- हो सकता है पानी पीने वाला मर भी जाए किन्तु, यह युवक बच जाएगा। वैसे भी आप सभी कुछ समय पहले कह ही रहे थे कि इसके स्थान पर मैं मर जाता, मैं मर जाता। सर्वप्रथम महात्माजी युवक की माता से बोले तो माताजी इस पानी को आप पी लें, आप वैसे भी वृद्ध हो गई हैं आपका प्रयाणकाल वैसे भी नजदीक ही है। यह सुनकर माता जी बोली- मैं अपने लाडले के प्राण बचाने के लिए यह पानी पीने को तैयार हूँ किन्तु मैं पतिव्रता हूँ। मेरी मृत्यु के बाद मेरे वृद्ध पति की सेवा कौन करेगा? तथा अभी तो मुझे अपने नाती-पोतों के विवाह आदि देखने हैं, अगर मैं मर गई तो वो सब कैसे देख पाऊँगी? अतः मैं अभी नहीं मरना चाहती। अब महात्माजी पिता से बोले- तो आप यह पानी पी लीजिए। यह सुनकर पिताजी बोले। महात्माजी! मैं यह पानी पी तो लूँ, लेकिन मेरी मृत्यु के बाद मेरी पत्नी का क्या होगा, मेरी इतनी जमीन-जायदाद है, उसका क्या होगा, मुझे सरकारी पैंशन मिलती है, उसका क्या होगा? और अभी तो मुझे बहुत से काम करने हैं, उन सबको किए बना मैं अभी नहीं मर सकता। महात्मा जी ने विनोद करते हुए कहा- आप दोनों आधा-आधा पी लो, दोनों के सभी क्रियाकर्म एक साथ हो जाएंगे। लेकिन वे तैयार नहीं हुए। अब महात्माजी ने श्रीमती जी (उसकी पत्नी) से कहा कि आप ही इस पानी को पी लीजिए जिससे आपके पतिदेव पुनः जीवित हो जाएं। यह सुनकर श्रीमती बोली- मेरे वृद्ध सास-ससुर ने तो संसार के सभी सुख भोग लिए हैं, जब वे ही नहीं पीना चाहते तो मैं कैसे पीऊ? मैं तो अभी जवान हूँ मैंने तो अभी संसार के सुख देखे भी नहीं हैं, मैं तो इनकी जायदाद और पेंशन से ही सुखपूर्वक जी लूँगी।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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